नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने देशभर के स्कूलों में एस्बेस्टस सीमेंट शीट्स (Asbestos Cement Sheets) के इस्तेमाल पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है। ट्रिब्यूनल ने कहा कि अब तक इस विषय पर कोई ठोस या वैज्ञानिक अध्ययन सामने नहीं आया है जिससे यह सिद्ध हो सके कि स्कूलों में एस्बेस्टस शीट्स से स्वास्थ्य को सीधा नुकसान होता है। पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) ने अपने हलफनामे में कहा कि इमारतों में लगी एस्बेस्टस शीट्स से फाइबर अपने आप नहीं निकलते, लेकिन मौसम के प्रभाव से यह फाइबर हवा, पानी या मिट्टी में जा सकते हैं। NGT ने कहा कि जब तक कोई ठोस वैज्ञानिक साक्ष्य नहीं मिलता, तब तक देशभर के स्कूलों में इन शीट्स के प्रयोग पर तत्काल प्रतिबंध लगाना उचित नहीं होगा।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए NGT का निर्णय
NGT ने अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट के वर्ष 2011 के फैसले (Kalyaneshwari बनाम यूनियन ऑफ इंडिया) का भी उल्लेख किया, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय ने एस्बेस्टस के उपयोग पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की याचिका खारिज कर दी थी। NGT की दो सदस्यीय पीठ — न्यायिक सदस्य न्यायमूर्ति अरुण कुमार त्यागी और पर्यावरण सदस्य डॉ. अफरोज अहमद — ने केंद्र सरकार और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) को निर्देश दिया कि वे देशभर में एस्बेस्टस से संबंधित सभी वैज्ञानिक अध्ययनों और रिपोर्टों की समीक्षा करें।
साथ ही, छह महीने के भीतर इस पर एक्शन टेकन रिपोर्ट (ATR) तैयार कर प्रस्तुत करें। इसके अलावा, NGT ने केंद्र सरकार और CPCB को यह भी आदेश दिया कि ATR में दिए गए दिशा-निर्देशों और मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) को सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों, विशेष रूप से दिल्ली के मुख्य सचिव को भी भेजा जाए ताकि नीति-निर्माण में एकरूपता लाई जा सके।
फाइबर सीमेंट उद्योग को बड़ी राहत, ₹10,000 करोड़ का योगदान
NGT के इस आदेश से फाइबर सीमेंट प्रोडक्ट्स मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (FCPMA) को बड़ी राहत मिली है। वर्ष 1981 में स्थापित यह संस्था देश के राजस्व में लगभग ₹10,000 करोड़ का योगदान करती है और इसमें 3 लाख से अधिक लोगों को रोजगार मिला हुआ है। अगर एस्बेस्टस पर प्रतिबंध लगाया जाता, तो इस उद्योग को भारी नुकसान होता। हालांकि, ट्रिब्यूनल ने यह भी स्पष्ट किया कि एस्बेस्टस के इस्तेमाल के दौरान सुरक्षा मानकों और सावधानियों का कड़ाई से पालन जरूरी है। NGT ने निर्देश दिया कि जहां भी एस्बेस्टस से संबंधित कार्य हो, वहां धूम्रपान, भोजन या पेय पदार्थों का सेवन पूरी तरह निषिद्ध होना चाहिए। एस्बेस्टस धूल और कचरे की ड्राई क्लीनिंग या झाड़ू लगाने जैसी गतिविधियों से बचना चाहिए, ताकि हवा में फाइबर न फैलें।
याचिकाकर्ता का दावा – बच्चों के स्वास्थ्य पर खतरा
यह मामला अमर कॉलोनी निवासी डॉ. राजा सिंह द्वारा दायर याचिका से जुड़ा है, जिसमें उन्होंने स्कूल भवनों में एस्बेस्टस शीट्स के उपयोग पर रोक लगाने की मांग की थी। उनका कहना था कि ग्रामीण क्षेत्रों के कई स्कूलों में अब भी एस्बेस्टस की छतें लगी हुई हैं, जो समय के साथ कमजोर होकर टूटने लगती हैं। इससे एस्बेस्टस फाइबर हवा में फैल जाते हैं, जिन्हें स्कूल के छोटे बच्चे सांस के जरिए अंदर ले लेते हैं। डॉक्टर सिंह ने कहा कि यह फाइबर फेफड़ों से जुड़ी गंभीर बीमारियों का कारण बन सकते हैं, जिनमें से कई घातक भी होती हैं। इन बीमारियों का असर वर्षों बाद दिखाई देता है, इसलिए इन्हें ‘धीमी मृत्यु के कारक’ भी कहा जाता है।
NGT ने माना कि एस्बेस्टस के दुष्प्रभावों पर अध्ययन की आवश्यकता है और भविष्य में इस विषय पर वैज्ञानिक प्रमाण सामने आने पर पुनर्विचार किया जा सकता है। फिलहाल, यह फैसला देशभर के स्कूलों के लिए राहत लेकर आया है, लेकिन स्वास्थ्य सुरक्षा पर निगरानी की जिम्मेदारी केंद्र और राज्यों दोनों पर है।

















