Rao Tularam Martyrdom Day: नसीबपुर के ऐतिहासिक शहीद स्मारक पर मंगलवार को प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 के महानायक राव तुलाराम और हरियाणा के वीर शहीदों को श्रद्धा सुमन अर्पित करने के लिए स्वास्थ्य मंत्री आरती सिंह राव, नारनौल के विधायक एवं पूर्व मंत्री ओमप्रकाश यादव सहित कई जनप्रतिनिधि और बड़ी संख्या में लोग पहुंचेंगे। इस दौरान स्मारक स्थल पर विशेष कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा, जिसमें स्वतंत्रता संग्राम के नायकों के बलिदान को याद किया जाएगा।Rao Tularam Martyrdom Day
1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में दक्षिण हरियाणा की धरती ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ जोरदार बिगुल बजाया था। राव तुलाराम ने इस क्रांति की बागडोर संभालते हुए गुड़गांव और महेंद्रगढ़ के बड़े हिस्से को विदेशी साम्राज्य से मुक्त कराया।Rao Tularam Martyrdom Day

रेवाड़ी के निकट अंग्रेजी छावनी को ध्वस्त कर उन्होंने गोकलगढ़ में तोप ढालने का कारखाना और टकसाल स्थापित की। यही नहीं, दिल्ली व आसपास के क्षेत्रों के क्रांतिकारियों को उन्होंने हर संभव सहयोग प्रदान किया। 16 नवंबर 1857 को नसीबपुर के रणस्थल पर उनकी अंग्रेजों से निर्णायक भिड़ंत हुई। हालांकि देशद्रोही रियासतों की गद्दारी से अंग्रेजों को बढ़त मिल गई, लेकिन राव तुलाराम ने हार मानने के बजाय संघर्ष जारी रखा।Rao Tularam Martyrdom Day
विदेशों तक अपनी वीरता की छाप छोड़ने वाले राव तुलाराम ने काबुल में जाकर पहली ‘आजाद हिंद फौज’ संगठित की और भारत से पलायन कर चुके विद्रोहियों को जोड़ा। हालांकि, लंबी संघर्षपूर्ण जीवनयात्रा के बाद 23 सितंबर 1863 को बीमारी के चलते उनका निधन हो गया।Rao Tularam Martyrdom Day

आज उनकी जयंती व पुण्यतिथि पर नसीबपुर का रणस्थल देशभक्ति और बलिदान की गाथा सुनाने वाला पावन स्थल बन चुका है।
नसीबपुर के युद्ध में अंग्रेज सेनापति जेरार्ड को मार गिराया: शावर्स के लौटने के बाद अंग्रेजों ने जेरार्ड को राव तुलाराम के विरुद्ध भेजा। जेरार्ड राव तुलाराम का पीछा करता हुआ 16 नवंबर, 1857 की सुबह नारनौल के निकट नसीबपुर गांव पहुंच गया। नसीबपुर में राव तुलाराम के नेतृत्व वाली भारतीय सेना और अंग्रेजों के बीच भीषण युद्ध हुआ। इस युद्ध में क्रांतिकारी दस्ते ने जेरार्ड को मार गिराया। जेरार्ड के मरने के बाद कोलफील्ड ने मोर्चा संभाला।
दोनों ओर से भयंकर युद्ध हुआ। चूंकि अंग्रेजों के पास हथियारों की कोई कमी नहीं थी और उन्हें गोरखा,पटियाला,नाभा सरीखी रियासतों का सैनिक सहयोग भी मिल गया था, इसलिए युद्ध में अंग्रेजों का पलड़ा भारी पड़ता गया।इस स्थिति में क्रांतिकारियों के सामने आत्मसमर्पण या मरने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं बचा।
क्रांतिकारियों ने अंत समय तक युद्ध किया। ब्रिटिश इतिहासकार मालेसन लिखते हैं कि ‘युद्ध में अंग्रेजों की विजय निश्चित दिखाई देने के बावजूद भी विद्रोही सैनिक पूरे साहस के साथ लड़े तथा उन्होंने एक दृढ़ संकल्प के साथ अपने प्राण न्योछावर कर दिए।
नसीबपुर के युद्ध में प्राणों की आहुतियां देने वाले क्रांतिकारियों की संख्या 5000 के पार पहुंच गई थी। राठ के लोग इस विकट परिस्थिति में क्रांतिकारियों को यदि शरण प्रदान नहीं करते तो इस संख्या और भी अधिक बढ़ सकती थी। नसीबपुर के युद्ध में अदम्य साहस का परिचय देने वाले राव रामसिंह को गंडाला गांव के लोगों ने अनेक दिनों तक छुपाये रखा था।

















