Haryana News: हरियाणा सरकार ने किसानों की सुविधा और पारदर्शिता के लिए ‘मेरी फसल मेरा ब्यौरा’ पोर्टल शुरू किया था ताकि फसल खरीद में गड़बड़ियों पर अंकुश लगाया जा सके। लेकिन अब यही पोर्टल फर्जीवाड़े का अड्डा बन गया है। ताज़ा खुलासे के मुताबिक, उत्तर प्रदेश का पीआर धान फर्जी रजिस्ट्रेशन के ज़रिए हरियाणा की मंडियों में बेचा जा रहा है।
यमुनानगर, करनाल और पानीपत जैसे जिलों में यमुना नदी और पॉपलर के खेतों को धान की फसल दिखाकर खरीद की जा रही है। किसानों का कहना है कि इस गड़बड़ी में आढ़ती, कुछ किसान और राजस्व विभाग के अधिकारी शामिल हैं। नतीजा यह है कि हरियाणा के स्थानीय किसानों की फसल समय पर नहीं बिक पा रही, जबकि बाहर से आए धान को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर खरीदा जा रहा है।
फर्जी धान की आवक: खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग ने यूपी-हरियाणा सीमा पर कई नाके स्थापित किए हैं, लेकिन इन नाकों पर कर्मचारियों की अनुपस्थिति से धान के ट्रक आसानी से मंडियों तक पहुंच रहे हैं। भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) के कार्यकर्ताओं ने जब कलानौर नाके पर वाहनों की जांच की, तो हकीकत सामने आ गई।
कई व्यापारी उत्तर प्रदेश से ₹1600-₹1800 प्रति क्विंटल पर धान खरीदकर हरियाणा की मंडियों में ₹2389 प्रति क्विंटल (ग्रेड-ए) और ₹2369 (कॉमन ग्रेड) के MSP पर बेच रहे हैं। इससे जहां हरियाणा के किसानों को नुकसान हो रहा है, वहीं उत्तर प्रदेश के किसानों की फसल औने-पौने दामों में बिक रही है। भाकियू नेताओं ने आरोप लगाया है कि डीएफएसी अधिकारियों ने कार्रवाई से इंकार कर दिया, जिसके कारण फर्जी धान की आवक जारी है।
मुख्यमंत्री को भेजी गई शिकायत: भारतीय किसान संघ के प्रदेश महामंत्री रामबीर सिंह चौहान ने बताया कि पोर्टल पर फर्जी रजिस्ट्रेशन के कई मामले सामने आ चुके हैं। कई किसानों के खसरा नंबर पहले से किसी और नाम पर दर्ज मिले हैं। चौहान ने कहा कि यह पूरा खेल राजस्व विभाग की मिलीभगत से चल रहा है और इसमें पटवारियों की लापरवाही साफ दिखाई दे रही है।
प्रतापनगर और अन्य धान बहुल्य क्षेत्रों में ऐसे कई मामले उजागर हुए हैं। उन्होंने बताया कि इस संबंध में मुख्यमंत्री को भी शिकायत भेजी जा चुकी है और मांग की है कि सभी फर्जी रजिस्ट्रेशनों की उच्चस्तरीय जांच की जाए ताकि असली किसानों को न्याय मिल सके।
जंगल और नदी फिर भी दिखाया जा रहा धान: सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि पोर्टल पर जिन खसरा नंबरों पर धान की फसल दर्ज है, वहां वास्तव में पॉपलर के पेड़, जंगल या यमुना नदी बह रही है। बावजूद इसके, उन खेतों को उत्पादक बताया गया है। पटवारियों को मौके पर गिरदावरी करनी होती है, लेकिन वे ज्यादातर मैदानी सत्यापन किए बिना ही ऑनलाइन एंट्री कर देते हैं।
नतीजतन, फर्जी किसान अपने नाम से या आढ़तियों के सहयोग से धान बेच देते हैं। इस गड़बड़ी से राज्य सरकार को भारी राजस्व नुकसान हो रहा है। कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि अगर जल्द सख्त कार्रवाई नहीं की गई, तो यह फर्जीवाड़ा किसानों के हितों को गहरा नुकसान पहुंचाएगा और ‘मेरी फसल मेरा ब्यौरा’ योजना की विश्वसनीयता पूरी तरह खत्म हो जाएगी।
















