हरियाणा: (सुनील चौहान ) हमने जब से होश संभाला है तो यही बात सुनते आए है कि अच्छी पार्टी की टिकट मिल जाए तो घटिया से घटिया प्रत्याशी का भी बेडा पार हो जाता है। मोदी राज के कई ऐसे उदाहरण भी देखने को मिले। जिनको मोदी के चेहरे से भारी जीत मिली।बेटी से संपूर्ण परिवार: ललिता मेमोरियल अस्पताल में 50 परिवारों को किया सम्मानित
लेकिन मेरा मानना है राजयोग से बढकर टिकट योग नहीं है। टिकट कई बार पैसे देकर या फिर राजनीति के दबाब से मिल जाती है, लेकिन जीत केवल उन्हीं की होती है जिनके किस्मत में राज योग होता है।
दक्षिण हरियाणा कई ऐसे नेता रहे है जिनको टिकट तो मिल गई, लेकिन राज योग नहीं मिला।
केस एक: बावल विधानसभा से हरचंदपुर के भरत को कोई नहीं जानता था। राजनीति का दबाब इतना बढा कि वह कांग्रेस से टिकट ले आया। पार्टी की ओर से सहयोग भी खूब किया गया, लेकिन उसे सफलता नहीं मिली। कोई उसकी किस्मत में राजयोग ही नहीं था।
केस दो:
हरियाणा रोजवेज के परिचालक रामेश्वरदयाल बावल के पूर्व विधायक को कोन नहीं जानता। एक गरीब परिवार से जुडे की किस्मत मेे टिकट योग नहीं था। इनैलो से 2009 में चुनाव लडा और जीत गए। जबकि बावल में इनैलो का इतना जनाधार भी नहीं था। जाहिर है उनकी किस्सत मे राजयोग था। इसी के चलते उसे राजयोग मिल गया।
केस तीन:
केंद्रीय मंत्री ने अपने दम पर रेवाडी विधानसभा सुनील मूसेपुर को भाजपा से टिकट दिला ली। अच्छे मत भी मिले। लेकिन किस्मत में राजयोग नहीं था तो कुछ मतो से मात खा गए।
केस चार:

भाजपा लहर के चलते कांग्रेस का वोट बैंक न के बराबर था। भाजपा की आपसी फूट ने बोट बैंक को बिखेर दिया। चिरंजीवराव की किस्मत में राजयोग था। भाजपा की फूट का फायदा उसे मिल गया।
हाल में भाजपा का दामन छोड कांग्रेस में शामिल हुए पूर्व मंत्री का वोट बैंक पर काफी पकड है। लेकिन राजयोग नहीं होने से वे तीन बार थोडी थोडी मतो से हार गए है। राजनीति के सलाहकारों का कहना है उनकी किस्मत मे राजयोग है, इसी लिए उन्होंने ऐसा कदम उठाया है।
जानिए क्या है जगदीश् यादव का बैकग्राउंड:
17 नवंबर 1954 को रेवाड़ी जिले के गांव हालुहेड़ा में स्वर्गीय मंगल सिंह बोहरा के घर जन्म। लंबे समय से राजनीतिक जीवन में सक्रिय। सिर्फ वर्ष 1996 में एक ही बार विधायक बनने का मौका मिला है, लेकिन तीन चुनावों में उनकी हार का अंतर हमेशा मामूली रहा है। यादव की गिनती उन नेताओं में होती है जिनका अपना जनाधार है।
एग्रीकल्चर ग्रेजुएट यादव की राजनीति का प्रमुख आधार रामपुर हाउस का विरोध ही रहा है। ऐसा पहली बार हुआ जब 2019 के चुनाव में जगदीश यादव उसी भाजपा में आ गए, जिसमें पहले से ही उनके धुर विरोधी सीनियर नेता राव इंद्रजीत सिंह मौजूद थे। यादव ने अपना पहला चुनाव वर्ष 1991 में लड़ा। कामयाबी नहीं मिली।

2019 दीपेंद्र हुड्डा को लोकसभा में हार का जो कड़वा घूंट पीना पड़ा था, उसका बड़ा कारण कोसली विधानसभा क्षेत्र का साथ नहीं मिलना था। अब जगदीश यादव के आने से कोसली में दीपेंद्र हुड्डा की ताकत बढ़ना तय है।
कई बार किया प्रयास, मिली सफलता
बता दे कि वर्ष 1996 में वह चौधरी बंसीलाल की हरियाणा विकास पार्टी से चुनाव लड़े और जीत दर्ज कर विधानसभा में पहुंचे। बंसीलाल सरकार गिरने पर वह ओमप्रकाश चौटाला की इनेलो में शामिल हुए। चौधरी बंसीलाल और ओमप्रकाश चौटाला दोनों ने ही उन्हें अपने मंत्रिमंडल में शामिल किया था। मध्य प्रदेश के एक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता के माध्यम से कांग्रेस में शामिल होने का एक बार पहले भी प्रयास हुआ था, लेकिन बात सिरे नहीं चढ़ पाई थी। इस बार उनकी बात सिरे चढती नजर आ रही है।
















