Car dilivery News: बुकिंग करवााने के बावजूद लाइन में खड़े है 8 लाख लोग, नहीं मिल रही कार; जानिए क्यों है ऐसा

 

भारत की कोई कंपनी नहीं बनाती सेमीकंडक्टर चिप

मुंबई: अगर आप भी नई गाड़ी खरीदने के बारे में सोच रहे हैं तो पहले उस वेटिंग लिस्ट के बारे में जरूर जान ले कहीं ऐसा न हो आप भी उसी लाईन में खडे हो जाएं जहां पहले से ही देश के 8 लाख लोग पहले से लाइन लगा कर खड़े हुए हैं. ये वो लोग हैं, जिन्होंने नई गाड़ी खरीदने के लिए अलग अलग कंपनियों में बुकिंग तो काफी समय पहले कराई थी, लेकिन इसके बावजूद ये कंपनियां अब तक अपने ग्राहकों को नई गाड़ी की डिलिवरी नहीं कर पाई हैं.

किस कंपनी के कितने ग्राहक कर रहे इंतजार:
किस कार कंपनी के कितने ग्राहक अपने नई गाड़ी का इंतजार कर रहे हैं. मारुति के ढाई लाख, मारुति, टाटा मोटर्स और महिंद्रा के एक-एक लाख और Kia मोटर्स के 75 हजार ग्राहक इस वेटिंग लिस्ट में हैं. अब आपके मन में सवाल होगा कि जब लोग ज्यादा कीमतों पर भी गाड़ियां खरीदने के लिए तैयार हैं तो फिर ये कंपनियां नई गाड़ियों की डिलिवरी क्यों नहीं कर पा रहीं.

सेमीकंडक्टर चिप ने रोकी गाड़ियों की डिलिवरी
इसकी वजह है दुनिया में सेमीकंडक्टर चिप (Semiconductor Chip) की भारी कमी. वैसे तो ये चिप साइज में माचिस की एक डिब्बी से भी काफी छोटी होती है, लेकिन इसने दुनिया की कुल 170 इंडस्ट्रीज को हिला कर रखा हुआ है. और इनमें जो इंडस्ट्री सबसे ज्यादा प्रभावित हुई है, वो ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री है.

ऑटो इंडस्ट्री को 150 लाख करोड़ का नुकसान
सेमीकंडक्टर चिप (Semiconductor Chips) की कमी से इस साल ऑटो इंडस्ट्री को 150 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हो चुका है. सेमीकंडक्टर चिप की कमी का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि कई देशों की अर्थव्यवस्था सेमीकंडक्टर चिप की कमी से खतरे में आ गई है. जापान जहां टोयोटा. सुजुकी, निसान जैसी बड़ी कार निर्माता कंपनियों के मुख्यालय हैं. वहां चिप की कमी से बड़ा आर्थिक नुकसान हुआ है.

जापान के निर्यात में 50  प्रतिशत की कमी आई
सितंबर 2021 में जापान के निर्यात में साल 2020 के मुकाबले 50  प्रतिशत की कमी आई है. ये किसी भी देश की अर्थव्यवस्था को कमजोर करने के लिए काफी है. इसी तरह से मध्य यूरोप के देशों को भी चिप की कमी से बड़ा नुकसान हुआ है. भारत में भी देश की जीडीपी में ऑटो सेक्टर की भादीदारी 6.4 प्रतिशत की है. इससे करीब 3 करोड़ लोगों के घर चल रहे हैं. और भारत को इससे बहुत नुकसान हुआ है.

एक गाड़ी में लगी होती है एक हजार से ज्यादा सेमीकंडक्टर चिप
आजकल पूरी दुनिया में जितनी भी गाड़ियां बनती हैं, उनके पावर स्टीयरिंग, ब्रेक सेंसर, एंटरटेनमेंट सिस्टम, एयर बैग और पार्किंग कैमरों में सेमी कंडक्टर चिप्स का ही इस्तेमाल होता है. आम तौर पर एक गाड़ी में एक हजार से ज्यादा सेमीकंडक्टर चिप लगी होती है. ये चिप्स कंप्यूटर प्रोग्रामिंग पर आधारित होती हैं और आपकी गाड़ी के डेटा को भी प्रोसेस करती है. सेमीकंडक्टर चिप्स के बिना आधुनिक गाड़ियों का निर्माण लगभग असंभव है.

इन डिवाइसेस में इस्तेमाल होती है चिप्स
गाड़ियां ही नहीं, ये चिप हर उस डिवाइस में इस्तेमाल होती है, जो आधुनिक है, इंटरनेट से जुड़ी है और जिसमें खास फीचर्स हैं. उदाहरण के लिए जैसे मोबाइल फोन, लैपटॉप, टीवी और दूसरे होम अप्लायंसेस. इसलिए इनकी उत्पादन पर भी इस कमी का असर पड़ा है. एप्पल (Apple) कंपनी इस साल 9 करोड़ आईफोन 13 का उत्पादन करने वाली थी, लेकिन चिप की कमी की वजह से केवल 8 करोड़ आईफोन 13 का ही उत्पादन हुआ है.

2023 तक बनी रहेगी चिप्स की शॉर्टेज
चिप के इस संकट के लिए कोविड-19 सबसे ज्यादा जिम्मेदार है. कोरोना वायरस की वजह से एक साल तक पूरी दुनिया में सेमीकंडक्टर चिप्स का उत्पादन बहुत घट गया था और अब भी इसकी सप्लाई मांग के मुकाबले बहुत कम है. सबसे बड़ी परेशानी ये है कि पूरी दुनिया में सिर्फ गिनी चुनी कंपनियों के पास ही सेमीकंडक्टर चिप्स बनाने की क्षमता है. इन कंपनियों ने अपना प्रोडक्शन बढ़ाया भी है, लेकिन फिर भी वर्ष 2023 से पहले इसकी शॉर्टेज बनी रहेगी.

भारत की कोई कंपनी नहीं बनाती सेमीकंडक्टर चिप
इसके अलावा एक बड़ी चुनौती ये है कि भारत की कोई भी कंपनी सेमीकंडक्टर चिप्स नहीं बनाती और भारत इस मामले में पूरी तरह से आयात पर निर्भर है. भारत की कार निर्माता कंपनियों को इन चिप्स की सबसे ज्यादा सप्लाई मलेशिया से होती है, जहां इस समय कोरोना की वजह से इन चिप्स का प्रोडक्शन बाधित है. इसलिए अगर आप आने वाले त्योहारों के मौके पर नई गाड़ी लेने की योजना बना रहे हैं तो हो सकता है कि आपको समय पर इसकी डिलिवरी ना मिल पाए और आपको ज्यादा कीमत भी चुकानी पड़े. इसे ऐसे समझिए कि आज आपने कोई गाड़ी बुक कराई, लेकिन उस गाड़ी की डिलिवरी आपको 6 महीने बाद अगले साल मई या जून में होती है. तो ऐसी स्थिति में आपको कार की अभी की कीमत नहीं चुकानी होगी, बल्कि वो कीमत चुकानी होगी, जो मई या जून महीने में होगी और ये कीमत ज्यादा ही होगी, क्योंकि कार बनाने वाली कम्पनियों की इनपुट कॉस्ट यानी निर्माण के दौरान आने वाली लागत केवल इसी साल में औसतन 6 प्रतिशत तक बढ़ चुकी है.

 

क्या है इसका समाधान?
सभी बड़ी कंपनियों का अनुमान है कि साल 2022 तक चिप का ये संकट बना रहेगा और 2023 तक हालात बेहतर होंगे. इसलिए आप चाहें तो नई गाड़ी ना खरीद कर अभी थोड़ा इंतजार कर सकते हैं. या पुरानी गाड़ी खरीदने के बारे में भी सोच सकते हैं. बहुत से लोग ऐसा कर भी रहे हैं. एक रिपोर्ट के मुताबिक नई गाड़ियों की डिलिवरी समय पर ना होने से पुरानी गाड़ियों का बाजार तेजी से बड़ा हो रहा है. एक अनुमान के मुताबिक इस साल भारत में पुरानी गाड़ियों की बिक्री, नई गाड़ियों से डेढ़ गुना हुई है, जो 2025 तक दोगुना हो सकती है.

संकट से निपटने के लिए केंद्र सरकार की योजना
इसके अलावा केंद्र सरकार ने भी इस संकट में अवसर तलाशते हुए 76 हजार करोड़ रुपये की नई योजना को मंजूरी दी है, जिसके तहत भारत को आने वाले 6 सालों में सेमीकंडक्टर चिप्स के प्रोडक्शन में आत्मनिर्भर बनाने का लक्ष्य रखा गया है.