ऐलनाबाद उपचुनाव: कांग्रेस की गुटबाजी से इनोलो की हुई जीत, जानिए पार्टी वाईज मतों का आंकलन

ऐलनाबाद: सुनील चौहान। ऐलनाबाद में नेशनल लोकदल ( इनेलो) जीत गई है। यह जीत न किसान आंदोलन से मिली है और न ही इनेलो की है। राजनीतिक विश्लेषक इस जीत की वजह कांग्रेस से शिफ्ट हुए वोटर्स को मान रहे हैं। भाजपा ने भी पिछली बार के मुकाबले अपना प्रदर्शन बेहतर किया है। 2019 के चुनाव में इनेलो को 57558 मिले थे और इस बार भाजपा ने ही इससे ज्यादा 59189 वोट हासिल किए। वहीं इनेलो ने भी अपना प्रदर्शन कुछ हद तक सुधारा है। इस बार इनेलो ने 65798 वोट हासिल किए, जो पिछली बार से 842 वोट ज्यादा है। पिछले चुनाव में कांग्रेस ने 35383 वोट हासिल किए थे लेकिन इस बार 20857 तक ही सिमट गई। इनेलो के अभय चौटाला ने चुनाव 6739 वोट से जीता है। 2019 का चुनाव 11922 वोट से जीता था। इनेलो अपना गढ़ बचाने में तो सफल रही लेकिन जीत का मार्जिन इस बार बहुत कम हुआ है। इसके लिए बहुत हद तक कांग्रेस के मतदाता का योगदान है जो, शिफ्ट होकर दूसरे दलों की ओर चला गया। इनेलो के लिए यह चुनाव प्रतिष्ठा का सवाल था, क्योंकि भाजपा-जजपा की किलेबंदी से अभय के लिए मुश्किल खड़ी हो गई थी। कांग्रेस उम्मीदवार को 2019 में 35383 वोट मिले थे। इस बार कांग्रेस प्रत्याशी 20857 तक सिमट गया। हरियाणा की राजनीति पर नजर रखने वाले विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेस की ओर से मोह भंग होने के बाद ज्यादातर वोटर इनेलो की ओर शिफ्ट हुआ है। यही शिफ्ट हुआ वोटर ही अभय चौटाला की जीत का कारण बना।

कांग्रेस गुटबाजी छोड़ काम करती तो कुछ और होते नतीजे:
कांग्रेस यदि खेमेबाजी छोड़कर अपने प्रत्याशी के लिए बेहतर रणनीति के साथ काम करती तो और इस प्रदर्शन को सुधारती तो ऐलनाबाद उप चुनाव के नतीजे कुछ और ही होते। उप चुनाव ने इनेलो के रणनीतिकारों की पेशानी पर पसीना ला दिया।अब उन्हें भी सोचना होगा कि किसान आंदोलन के भरोसे नैया पार नहीं लगेगी। ऐलनाबाद इनेलो का गढ़ है और यदि गढ़ को बचाने में ही जद्दोजहद करनी पड़ रही है तो उनके लिए चिंता की बात है।

पकड़ मजबूत करने के लिए नए सिरे से मंथन की जरूरत:

इनेलो के लिए चुनाव में सब कुछ पॉजटिव था। मसलन किसान आंदोलन उनके पक्ष में रहा। पार्टी में कोई फूट भी नहीं थी। पूर्व सीएम ओम प्रकाश चौटाला तक सजा पूरी होने के बाद पार्टी के लिए प्रचार कर रहे थे। फिर भी इनेलो उम्मीदवार का प्रदर्शन उम्मीद के अनुरूप नहीं रहा। राजनीतिक विश्लेषक इसकी वजह मान रहे हैं कि प्रदेश की राजनीति में इनेलो की पकड़ कमजोर हो रही है। इस बार विधानसभा चुनाव में इनेलो का एक तरह से सफाया हो गया, उनका अंतिम किला भी अभेद नहीं रहा। ऐसे में विश्लेषक मानते हैं कि पार्टी को अपनी रणनीति पर मंथन की जरूरत है।

किसान नेताओं के सामने भी बड़ा सवाल:

किसान आंदोलन का नेतृत्व कर रहे नेताओं के सामने भी चुनाव परिणाम सवाल खड़ा कर रहा है कि क्या गांवों में बैठा किसान उनके साथ है। अब उन्हें इस पर विचार करना होगा। देश भर की नजर ऐलनाबाद उपचुनाव पर इस वजह से भी थी क्योंकि उपचुनाव की वजह नए कृषि कानून थे। इसलिए हर कोई देखना चाह रहा था कि किसान आंदोलन आखिर मतदाताओं के बीच खड़ा कहां है? अापसी मतभेद का शिकार किसान नेता भी पहली परीक्षा में फेल होते नजर आए हैं। भाजपा का विरोध करते-करते आंदोलन जाट और सिख वोटरों तक सीमित रह गया है।

भविष्य के लिए सामने खड़ी हैं कई चुनौतियां:
इनेलो के सामने अब चुनौती है कि पार्टी किस तरह से मतदाताओं के सामने अपनी छवि को मजबूत करे। सच यह है कि उपचुनाव में भाजपा ने जो टक्कर दी है वैसा उम्मीद न तो इनेलो ने की थी और न ही किसान नेताओं ने। इनेलो उम्मीदवार अभय सिंह चौटाला हालांकि दावा कर रहे हैं कि सरकार की पूरी मशीनरी चुनाव में लगी थी। लेकिन ऐसे आरोपों से स्थिति को नहीं छिपाया जा सकता। पार्टी को इसके लिए अपनी रणनीति बदलने पर विचार करना होगा।

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