श्री गुरु नानक देव जी महाराज का 550वां प्रकाश वर्ष
Guru Nanak: श्री गुरु सिंह सभा गुरुद्वारा में सिखों के पहले गुरु श्री गुरु नानक देव जी का प्रकाश दिवस शुक्रवार को धूमधाम से मनाया गया। जगह जगह लंगर आयोजित किए गए वहीं रेवाड़ी में सुबह सुबह प्रभात फेरी निकाली गई
गत तीन दिनों से चल रहे श्री अखंड पाठ साहिब का भोग शुक्रवार सुबह 10 बजे लगाया गया और दोपहर 2 बजे तक कीर्तन दरबार सजाया गया।
गुरु नानक देव जी की 555 वीं जयंती है। सिख धर्म के पहले गुरु और संस्थापक गुरु नानक देव की जयंती कार्तिक पूर्णिमा के दिन बड़े धूमधाम के साथ मनाई जाती है। लोग इस दिन को प्रकाश उत्सव और गुरु पर्व के रूप में मनाते हैं।
प्रकाश पर्व जगह जगह लंगरों का आयोजन होता है। गुरु नानक देव बचपन से ही धार्मिक प्रवृति के थे। उन्होंने अपना पूरा जीवन मानव समाज के कल्याण में लगा दिया था। सुबह से गुरुद्वारों में भींड बनी रही।
Gurunanak विचारधारा
आज सारा समाज पैसे के लिए अंध प्रतिद्वंदता व पापाचार में फंसा हुआ है। गुरु महाराज ने कहा था कि अधिक माया पाप के बिना इकट्ठी नहीं होती है तथा मरने पर साथ नहीं जाती। श्री गुरु जी महाराज ने संतों व सिद्ध पुरुषों से भी यह संवाद किया कि वे केवल आत्म मोक्ष के लिए नहीं, बल्कि समाज का उद्धार करने के लिए भी हैं।
Gurunanak जी की शिक्षाएँ
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि गुरु नानक की शिक्षाएँ गुरु ग्रंथ साहिब में निहित हैं जो सिख धर्म का ग्रंथ है। उन्होंने इस तथ्य पर जोर दिया कि सर्वशक्तिमान निराकार, कालातीत और मानवीय समझ से परे है। अन्य संस्थागत धर्मों की तरह, गुरु नानक को जाति व्यवस्था और अनुष्ठान स्वीकार्य नहीं थे; इसके बजाय, उन्होंने जीवन की सादगी, आज्ञाकारिता और भक्ति का उपदेश दिया। नाम जपना का मतलब है भगवान के नाम का ध्यान करना, कीरत करनी का मतलब है ईमानदारी से जीवन यापन करना और वंड छकना का मतलब है दूसरों को दान देना, ये सिख धर्म के तीन मूल सिद्धांत हैं। Gurunanak ने भी सेवा पर जोर दिया, वे लोगों से कहते थे कि मानवता की सेवा करना ही ईश्वर की सेवा है।
सिख धर्म के संस्थापक श्री Gurunanak देव जी ने भारत और देश के बाहर कई स्थानों का दौरा किया और सहिष्णुता और एकता का उपदेश दिया। इन यात्राओं को ‘उदासियाँ’ कहा जाता है, जिसमें मक्का, मदीना, तिब्बत और श्रीलंका जैसे दूर-दराज के देशों की यात्राएँ शामिल थीं।आज, Gurunanak के संदेश पर ध्यान दिया गया और उनके अनुयायियों को सिख कहा गया, जिसका अर्थ है ‘शिक्षार्थी या छात्र।’ गुरु नानक ने करतारपुर में अपना पहला सिख समाज स्थापित किया, जहाँ उन्होंने लंगर की अवधारणा शुरू की, एक सार्वजनिक रसोई जो जरूरतमंदों, गरीबों, अपंगों और बेसहारा लोगों के साथ-साथ पवित्र पुरुषों को उनके रंग या धर्म की परवाह किए बिना मुफ्त भोजन प्रदान करती है। लंगर की यह परंपरा आज भी दुनिया भर के सभी गुरुद्वारों में निभाई जाती है।