हरियाणा: नारनौल में झूठी गवाही और कानूनी दांवपेंच के सहारे हुई एक परिवार की तबाही और फिर 22 साल के लंबे कानूनी संघर्ष के बाद दहेज हत्या के एक मामले में एक परिवार को न्याय मिला। 16 नवंबर को जयपुर न्यायालय की पीठासीन अधिकारी न्यायधीश रिद्धिमा शर्मा ने बड़ा फैसला सुनाते हुए इस परिवार को दोषमुक्त घोषित किया है।
साक्ष्यों से ये साबित हुआ कि उस समय विवाहिता ने आत्महत्या की थी तथा वह डिप्रेशन से पीड़ित थी। संघर्ष कर रहे परिवार की बेटी आस्था राव ने स्टिंग कर छिपे तथ्यों और झूठे गवाहों को कोर्ट के समक्ष उजागर किया। गुरुवार को अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर से वर्चुअल माध्यम से पत्रकार वार्ता कर आस्था राव ने मामले की जानकारी मीडिया से साझा की।आस्था राव बताती हैं कि उनका परिवार नारनौल शहर की महेंद्रगढ़ रोड़ पर ऑफिसर्स कॉलोनी के ए-12 मकान में रह रहा था। 10 फरवरी 1998 में उसके भाई योगेश की शादी नारनौल में आईटीआई निवासी रेणुका से हुई थी। योगेश एमबीए करने के पश्चात जयपुर में केंद्र के एनएसएसओ विभाग में नौकरी के कारण जयपुर में थे तथा वहीं किराये के मकान में रेणुका भी उनके साथ थी।
16 जून 1999 को रेणुका ने फंदा लगाकर सुसाइड कर लिया। इस घटना के बाद एसएमएस अस्पताल के चिकित्सकों के बोर्ड ने पोस्टमार्टम कर मौत का कारण डिप्रेशन बताया था। इस केस के बाद उनका परिवार जयपुर से नारनौल आ गया था, परंतु इसके बावजूद पीहर पक्ष के लोगों ने उनके परिवार पर कोर्ट में दहेज हत्या का झूठा केस कर दिया तथा कोर्ट में झूठे गवाह भी खड़े कर दिए।
जिसके परिणामस्वरूप राजस्थान पुलिस कोर्ट के वारंट लेकर नारनौल आयी तथा उसके पिता जोगेंद्र को गिरफ्तार कर जयपुर ले गई तथा न्यायिक हिरासत में डाल दिया। जबकि मेरी भाभी के डिप्रेशन का इलाज हम और वे मिलकर करवा रहे थे। सास बिमला यादव भी इलाज के कारण मेरे भाई-भाभी के साथ जयपुर में रह रही थीं।
इस बयान से 10 साल की सजा:
सुसाइड के बाद लंबी जांच उपरांत मृतका के डिप्रेशन के डॉक्टरी इलाज के पुख्ता सबूतों के कारण पुलिस ने लड़का पक्ष के खिलाफ चालान पेश करने की बजाय, एफआर (नकारात्मक रिपोर्ट) पेश कर दी। मगर बाद में मृतका के परिवार ने जयपुर कोर्ट में याचिका दायर कर दी।
महेंद्रगढ़ के जिस गवाह वीरसिंह के बयान से 10 साल की सजा हुई थी, उसने कोर्ट में कहा था कि वह लड़की वालों को नहीं जानता। लेकिन जयपुर में वह योगेश-रेणुका के घर दूध देने जाता था। एक दिन जब वह दूध देने वहां गया तब परिवार के लोग दहेज की मांग करते हुए रेणुका को यातना देते देखा – सुना था। पता चला की रेणुका की मौत हो गई। इसे कोर्ट ने इंडिपेंडेंट विटनेस मान लिया था। इसी बयान के आधार पर केस आगे बढ़ता गया।
अफसोस – ‘झूठा कलंक माथे पर लिए पिता दुनिया छोड़ गए
आस्था ने बताया कि गवाह वीर सिंह चश्मदीद दूधिया बन झूठी गवाही दे गया था। उसने ऐसी कहानी गढ़ी कि हमें 10 साल के कठोर कारावास का फरमान सुना दिया गया। कैंसर से पीड़ित मेरी मां विजय यादव भी जूझ रही थी। भाई डिप्रेसिव अग्जाऐल में जा चुका था। पुराने डायबिटिक मेरे पिता को 4 साल के लंबे समय तक जेल में रहने के कारण उनका मल्टी ऑर्गन फेलियर हो चुका था। 21 अप्रैल 2008 को 60 की उम्र में वे दुनिया छोड़कर चले गए।
स्टिंग से मिला न्याय:
आस्था ने वर्ष 2009-10 में स्टिंग किया, उस समय वह एमए इंग्लिश की स्टूडेंट थी। स्टिंग में मृतका के पिता बता रहे हैं कि वह गवाह वीर सिंह उनका प्रॉपर्टी डीलिंग में मुख्य पार्टनर है। मृतका मां ने बताया कि इस गवाह के तो उन्होंने एक प्लाॅट भी नाम करवा रखा है। वीर सिंह स्टिंग में स्वयं के लिए 5 लाख और रेणुका के माता-पिता द्वारा 50 लाख की मांग करना बताता है।
कहता है 20-30 लाख दे देना मामला निपटा देंगे। वीर सिंह के भाई ने भी कोर्ट में बयान दिए कि उक्त गवाह ने कभी जयपुर में दूध बिक्री या डेयरी का काम ही नहीं किया। वीर सिंह की गवाही पर कोर्ट ने टिप्पणी की है कि “यह अत्यंत हास्यास्पद है कि बिना किसी ठोस छानबीन या आधार के इस तरह के गवाह न्यायालय में अभियोजन पक्ष द्वारा परिक्षित करवाये गये।