रेवाडी: सुनील चौहान। इंदिरा गाँधी विश्वविद्यालय मीरपुर के छात्र कल्याण विभाग व राष्ट्रीय सेवा योजना के सयुंक्त तत्वाधान में आज गुरू तेग बहादुर शहीदी दिवस का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पदमश्री एवं शहीद भगत सिंह सेवा दल के अध्यक्ष जितेन्द्र सिंह शन्टी तथा कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉ. डी.पी. भारद्वाज रहे। कार्यक्रम का शुभारम्भ द्वीप प्रज्जवलित व मां सरस्वती वंदना करके किया गया। विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. एस.के.गक्खड़ ने मुख्य अतिथि व कार्यक्रम अध्यक्ष का स्वागत करते हुए कहा कि त्याग एवम् वैराग्य की मूर्ति श्री गुरू तेग बहादुर जी का जन्म पंजाब राज्य के अमृतसर जिले में हुआ था। उनकी वीरता से प्रसन्न होकर उनके पिता श्री हरगोबिन्द साहिब जी ने उनका नाम त्यागमल से तेग बहादुर (तलवार का धनी) रख दिया। उन्होंने हिन्दु धर्म की लड़ाई लड़ी और कुर्बानियां दी और उन्होंने गुरू के प्रति सच्ची श्रृद्धा व समर्पण की भावना के बारें में विस्तार से बताया।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि जितेन्द्र सिंह शन्टी जो शहीद भगत सिंह सेवा दल के अध्यक्ष भी है, ये गत 25 वर्षाें से लावारिस लासों का दाह संस्कार हेतु निरन्तर कार्य कर रहे है। उन्होने गुरू तेग बहादुर के जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि उन्होंने मानवता व धर्म की रक्षा के लिए अपना पूरे परिवार का बलिदान दे दिया। अत्याचारी मुगलशासक औरंगजेब हिन्दुओं को इस्लाम स्वीकार करने के लिये उन पर तरह-तरह के अत्याचार कर रहा था। औरंगजेब के जुल्मों से तंग आकर कश्मीरी पंडितों ने आनंदपुर साहिब (जो पंजाब में है) जाकर गुरू तेग बहादुर जी के सामने गुहार लगाई। उनकी गुहार सुनकर गुरू जी गहरी सोच में पड़ गए। उनके पुत्र गोबिन्द राय जो उस समय केवल 9 वर्ष के थे, इसका कारण पूछा तो गुरू जी बोले किसी महापुरूष को बलिदान देना पड़ेगा। तब गोबिन्द राय ने कहा कि आपसे बड़ा महापुरूष और कोन हो सकता है, अन्त में धर्म की रक्षा करते हुए दिल्ली के चांदनी चौक पर मुगल बादशाह के क्रूर जल्लादों ने गुरू जी का सिर धड़ से अलग कर दिया। सनातन धर्म, मानवीय मूल्यों, आदर्शाें तथा सिद्वान्तों की रक्षा के लिये गुरू तेग बहादुर जी ने अपने प्राण दे दिये। उनका पार्थिव शरीर नष्ट हो गया लेकिन कीर्ति हमेशा के लिये अमर हो गई। जहाँ गुरू जी का शीश गिरा वहाँ आज गुरूद्वारा शीश गंज मौजूद है जहाँ पर श्रद्वालुओं का मेला लगा रहता है, लंगर चतले है और गुरबाणी का पाठ होता है।
कार्यक्रम अध्यक्ष डॉ. डी.पी. ने इस अवसर पर अपने वक्तव्य में कहा कि श्री शन्टी जी को यह अवार्ड उनके सेवा कर्म भाव से प्राप्त हुआ है। यह सब कुछ धर्म के कारण ही होता है। धर्म की परिभाषा बताते हुए कहा कि धर्म पूजा पद्वति नही अपितु धर्म सेवा भाव होती है। धर्म को कर्तव्य बोध जाना जाता है। मनुष्य का धर्म के अनुसार कार्य करते रहना चाहिए। इसी कारण इस अवसर पर राष्ट्रभक्त का स्मरण किया गया है।
इससे पूर्व विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रो. प्रमोद कुमार ने मुख्य अतिथि व कार्यक्रम अध्यक्ष का विश्वविद्यालय में आगमन पर स्वागत किया और कहा कि डॉ. डी.पी. भारद्वाज प्रमुख समाजिक कार्यकर्ता है और मुख्य अतिथि ने कोविड-19 के दौरान मृत्यु हुए काफी संख्या में उनका दाह संस्कार किया और इस विश्वविद्यालय मंे इन्डोर स्टेडियम, अध्यापक आवासीय भवनों, छात्रावास भवनों का निर्माण कुलपति के मार्गदर्शन में अति शीघ्रता से पूरा कर लिया जाएगा और उनके मार्गदर्शन में यह विश्वविद्यालय बहुमंखी विकास की ओर अग्रसर है।
राष्ट्रीय सेवा योजना के कार्यक्रम समन्वयक डॉ. कर्ण सिंह ने मुख्य अतिथि का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत किया और कहा कि उन्होंने कोरोना महामारी से पीड़ितों को हस्पताल पहुचाया और ये 102 बार रक्तदान कर चुके है और 22 यूनिट रक्त जरूरतमंदो को भी प्रदान कर चुके है और विभिन्न क्षेत्रों में इनका सराहनीय योगदान रहा है। इस प्रकार की मानवता की सेवा के लिए व सामाजिक कार्याें मे महत्वपूर्ण योगदान देने के लिए इन्हें पदमश्री अवार्ड से नवाजा गया है।
अन्त में प्रो. विजय कुमार, छात्र कल्याण अधिष्ठाता ने धन्यवाद ज्ञापन प्रस्ताव प्रस्तुत किया और पूरी एनएसएस टीम व विभिन्न महाविद्यालयांे से आए कार्यकम अधिकारियों सहित स्वयंसेवकों को इस कार्यक्रम के सफल संचालन के लिए बधाई दी। इस अवसर पर वृक्षारोपण किया गया व शहीद भगत सिंह व राजगुरू के चित्र का अनावरण भी किया गया।