कभी धारूहेड़ा में होती थी 8 रामलीलाएं, आज केवल दो ही जारी
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धारूहेड़ा: रामलीला को लेकर बड़े-बुजुर्गों में भले ही आज भी लगाव हो लेकिन युवा पीढ़ी की उदासीनता से इसका क्रेज धीरे-धीरे कम होने लगा है। बुजुर्गों को अब इस बात की चिंता है कि वर्षों पुरानी यह परंपरा कहीं बंद न हो जाए। वजह यह है कि रामलीला के लिए कलाकारों की कमी होने के साथ दर्शक भी कम होने लगे हैं।
कभी होती थी 8 जगह रामलीला: एक समय था कि औद्योगिक कस्बेंं यानि शहर में 8 जगह रामलीला होती थी। जिससे तीन रामलीला बास रोड पर, मनीराम बेगीचा, बस स्टैड, सोहना रोड, सेक्टर आदि की रामलीलाएं शामिल है। लेकिन इस साल केवल दो ही जगह रामलीला हो रही है। आयोजन समिति से जुड़े लोग बताते हैं कि रामलीला उन्हें विरासत में मिली। Ramlila News
रामलीला की खास तैयारी होती थी। आमतौर पर सामूहिक रूप से बैठक कर रामलीला की रूपरेखा तैयार की जाती थी। रामलीला में कुछ स्थानीय और कुछ बाहर से कलाकार मंगाते थे। रामलीला देखने के लिए लोग काफी संख्या में पहुंचते थे। अब कलाकारों की कमी होने लगी है। नए लोगों में रामलीला के आयोजन से जुड़ने का उत्साह नहीं दिख रहा है। Ramlila News
भीड जुटाने के लिए करते प्रचार: रामलीला में भीड जुटाने के लिए प्रचार किया जाता था इतना जाने वाले प्रस़िऋ कलाकारों ने महंगे मेहनतनामा देकर बुलाया जाता था।
रामलीला के आयोजन की परंपरा को आगे बढ़ाना बड़ी चुनौती बन गई है। यही स्थिति बनी रही तो आने वाले समय में रामलीला के आयोजन बंद हो सकता हैं। इस बाद रामलीला में दर्शक ही नहीं आ रहे है। ऐसे मे घाटे का सोदा बन गई है।
राहुल, सैयद क्लब रामलीला
बढ़ती मंहगाई और सुरक्षा की कमी के कारण धार्मिक आयोजन करना मुश्किल हो गया है। नवरात्र के मौके पर ग्रामीणों के सहयोग से रामलीला का 15 दिवसीय आयोजन होता था। अब टीवी, कम्प्यूटर, मोबाइल आदि में लोग उलझे रहते हैं। रामलीलाएं बद होती जा रही है।
कार्तिक यादव, धारूहेड़ा
धार्मिक आयोजन में रुचि नहीं लेते। इस वजह से रामलीला का रंग भी फीका पड़ने लगा। 80 के दशक में गांव में रामलीला के कई कलाकार थे भौतिक चमक-दमक बढ़ने के कारण रामलीला में नए कलाकारों का आना धीरे-धीरे कम होने लगा।
विरेंंद्र सिंह, धारूहेड़ा
बेतहाशा बढ़ती महंगाई, कलाकारों की कमी और लोगों की रामलीला की घटती रुचि चिंता का विषय है। करीब 50 साल से उनकी टीम रामलील करवा रही थी। लोगों का रूझान कम होता जा रहा है।
राहुल जोशी, श्रीरामलाला समिति