Haryana: महेंद्रगढ़ और रेवाड़ी जिले राज्य के शिक्षा हब माने जाते हैं, लेकिन वर्तमान हालात शिक्षा विभाग की सकल लापरवाही को उजागर कर रहे हैं। महेंद्रगढ़ के जिला शिक्षा अधिकारी (DEO) सुनील दत्त पहले से ही तीन महत्वपूर्ण पदों पर कार्यरत हैं: जिला शिक्षा अधिकारी (DEO), जिला प्राथमिक शिक्षा अधिकारी (DEEO), और DIET प्रिंसिपल। अब उन्हें रेवाड़ी जिले के DEO, DIET प्रिंसिपल और DEEO के अतिरिक्त पदों का चार्ज भी सौंपा गया है। इसका मतलब यह है कि अब दो जिलों की शिक्षा प्रणाली और छह अहम पदों की जिम्मेदारी एक ही अधिकारी के कंधों पर आ गई है।
रेवाड़ी में तीनों पद जुलाई से खाली हैं, जबकि महेंद्रगढ़ में जून से पूरी नेतृत्व जिम्मेदारी एक व्यक्ति पर निर्भर है। इस भारी बोझ के कारण सरकारी स्कूलों के निरीक्षण, मिड-डे मील की गुणवत्ता जाँच, शिक्षकों की निगरानी और शैक्षिक योजना जैसी गतिविधियां ठप हो गई हैं। शिक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि जब एक अधिकारी दो जिलों के प्रशासनिक दायित्वों के बोझ तले दबा हो, तो शिक्षण गुणवत्ता और क्षेत्रीय कार्य पर असर पड़ना स्वाभाविक है। यह स्थिति उन जिलों के लिए चिंताजनक है, जिन्होंने राज्य में शिक्षा का मजबूत मॉडल प्रस्तुत किया है।
HES-1 अधिकारियों की भारी कमी
राज्य में HES-1 पदों की कमी एक गंभीर समस्या बन गई है। कई जिलों में DEO और DEEO के पद खाली हैं। रेवाड़ी और महेंद्रगढ़ की स्थिति इसके प्रमुख उदाहरण हैं। अधिकारियों के अनुसार, जून और जुलाई में विभिन्न रिटायरमेंट के बाद कई जिलों में पोस्ट खाली रही, और विभाग ने इसे छिपाने के लिए अतिरिक्त चार्ज देने का सहारा लिया। हालाँकि, प्रमोशन लिस्ट कुछ दिनों में जारी होने की संभावना है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि इसके बाद भी HES-1 पदों की कमी पूरी तरह से नहीं दूर होगी। संभावना है कि इस बार विभाग प्रत्यक्ष भर्ती के माध्यम से नए HES-1 अधिकारियों को भर्ती कर सकता है।
शिक्षा प्रणाली पर गंभीर प्रभाव और आगे की चुनौतियां
महेंद्रगढ़ में हाल के महीनों में निरीक्षण काफी कम हो गए हैं। FLN (Foundational Literacy and Numeracy) कार्यक्रम, मिड-डे मील योजना और अन्य शिक्षा गतिविधियों के निरीक्षण भी बहुत कम हुए हैं। रेवाड़ी का अतिरिक्त चार्ज जोड़ने के बाद, शिक्षा निगरानी की स्थिति और भी चुनौतीपूर्ण हो जाएगी। अधिकारियों का मानना है कि इतने जिलों और जिम्मेदारियों का प्रबंधन एक व्यक्ति के लिए असंभव है, जिससे स्कूल शिक्षा की निगरानी करना और मुश्किल हो गया है। यदि स्थिति में सुधार नहीं हुआ, तो लाखों बच्चों की पढ़ाई और बोर्ड परीक्षा की तैयारी भी प्रभावित हो सकती है।
















