लोकडाडन की आशंका व मजदूरों का पलायन उद्योगों पर पड रहा भारी

रेवाडी: सुनील चौहान। देश में तेजी से बढ रहे कोरोना के चलते लोकडाउन की आशंका बढती जा रही है। सबसे ज्यादा कोरोना की मार झेल रहे महाराष्ट्र में लगे लॉकडाउन का असर हरियाणा तक पहुंच रहा है। धारूहेडा, बावल स्थित कं​पनियों में महाराष्ट्र से आने वाले पार्ट्स की आपूर्ति ठीक नहीं होने के चलते इनके उत्पादन पर असर पडने लगा है।
ऐसे में हीरो, होड़ा व मारुति जैसी बड़ी कंपनियों के लिए छोटे पार्ट्स बनाने वाली रेवाड़ी व गुरुग्राम की हजारों फैक्ट्रियों के उत्पादन पर असर पड़ने से इनकार नहीं किया जा सकता है। अकेले बावल आईएमटी व धारूहेड़ा में संचालित होने वाली करीब दो हजार वेंडिंग फैक्ट्रियों में कार्यरत एक लाख श्रमिकों की नौकरी पर इसका असर देखा जा सकता है। ऐसे में देश को आर्थिक व्यवस्था को बचाने के लिए सभी को मास्क व सामाजिक दूरी पर फोकस करने की जरूरत है।

20 हजार श्रमिक छोड़ गए फैक्टरी
आईएमटी बावल व धारूहेड़ा की दो हजार फैक्टरियों में करीब एक लाख श्रमिक कार्यरत हैं। अधिकतर ये श्रमिक यूपी, बिहार, राजस्थान, छत्तीसगढ़ व मध्य प्रदेश निवासी हैं। उद्योग संचालकों के अनुुसार लॉकडाउन की आशंका के चलते औसतन प्रत्येक फैक्टरी से 20 प्रतिशत श्रमिक जा चुके हैं। अब उत्पादन बनाए रखने के लिए बचे हुए श्रमिकों से डबल शिफ्ट करानी पड़ रही है। वहीं नए श्रमिकों के लिए भी भागदौड़ करने के बाद भी श्रमिक नहीं मिल पा रहे हैं।
माल का एक्सपोर्ट पर पड रहा असर:
करीब पांच साल पहले जिले से दूसरे देशों में करीब 45 लाख रुपये के माल का एक्सपोर्ट होता है। यह पांच साल में बढ़कर दोगुना तक पहुंच चुका है। मेटल उद्योग जहां रेवाड़ी में ज्यादा है, वहीं बावल व धारूहेड़ा में ऑटोमोबाइल कंपनियों का हब है। गुरुग्राम से लेकर राजस्थान के नीमराना तक कई बड़ी कंपनियां संचालित हो रही हैं। कई मल्टी नेशनल कंपनी भी होरी, होंडा व मारुति के पार्ट्स बनाने के भरोसे ही संचालित हो रही हैं। राजस्थान के भिवाड़ी व टपूकड़ा औद्योगिक क्षेत्र के भी इन बड़ी कंपनियों से जुड़े हुए हैं।
ऐसे में आने वाले दिनों में दोनों कंपनियों के उत्पादन पर असर पड़ना निश्चित हैं। इसका प्रभाव यह होगा कि गुरुग्राम से लेकर रेवाड़ी तक इन कंपनियों के लिए पार्ट्स बना रही फैक्टरियों का उत्पादन भी प्रभावित हो जाएगा। इससे सीधा असर श्रमिकों के रोजगार पर पड़ेगा। वहीं लॉकडाउन की आशंका में अधिकतर कंपनियों से औसतन 20 प्रतिशत श्रमिक गांव जा चुके हैं। श्रमिक नहीं मिलने के चलते दो-दो शिफ्ट में काम कराया जा रहा है।