माँ शाकुंभरी विश्वविद्यालय के बॉटनी विभाग की शोध टीम ने एक दुर्लभ पौधे की प्रजाति की खोज कर देश का नाम रोशन किया है। यह प्रजाति अब तक पूरी दुनिया के लिए अज्ञात थी। इस नए पौधे का नाम “स्वर्टिया नेक्टेरिकोनैटस (Swertia nectariconatus)” रखा गया है। विश्वविद्यालय के बॉटनी विभाग के डॉ. हर्ष सिंह और सिक्किम विश्वविद्यालय के डॉ. अरुण छेत्री ने इस अनोखी खोज को अंजाम दिया। यह खोज भारत की जैव विविधता और वैज्ञानिक क्षमता का प्रमाण है।
डॉ. हर्ष सिंह ने बताया कि यह दुर्लभ पौधा उत्तर सिक्किम के हिमालयी क्षेत्र भातार धॉमयोंग में पाया गया है, जो अपनी समृद्ध जैव विविधता के लिए जाना जाता है। उन्होंने कहा कि यह खोज यह साबित करती है कि भारत के पर्वतीय क्षेत्र अब भी कई अमूल्य प्राकृतिक खज़ानों को समेटे हुए हैं। यह पौधा बेहद आकर्षक हरे-नीले रंग का है और ऊँचाई वाले ठंडे इलाकों में उगता है। यह खोज न केवल वनस्पति विज्ञान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण है बल्कि पर्यावरण संरक्षण के नजरिए से भी अहम मानी जा रही है।
शोधकर्ताओं ने बताया कि इस पौधे की सबसे खास बात इसकी विशेष ग्रंथियां (Specialized glands) हैं, जो इसके आधार से जुड़ी हुई हैं। यही विशेषता इसे स्वर्टिया की अन्य प्रजातियों से अलग बनाती है। पौधे की बनावट, पत्तियों की संरचना और इसके फूलों के रंग की गहराई भी इसे एक अनोखी पहचान देती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस पौधे में औषधीय गुण होने की भी संभावना है, जिस पर आगे शोध किया जाएगा।
अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की नई पहचान
इस खोज को न्यूजीलैंड की अंतरराष्ट्रीय वनस्पति शोध पत्रिका “फाइटोटाक्सा (Phytotaxa)” में प्रकाशित किया गया है। इसके साथ ही इस नई प्रजाति को इंटरनेशनल प्लांट नेम्स इंडेक्स (IPNI) में भी दर्ज किया गया है, जिसे ब्रिटेन के क्यू बॉटनिकल गार्डन (Kew Botanical Gardens) द्वारा संचालित किया जाता है। विश्वविद्यालय की कुलपति प्रोफेसर वाई. विमला ने कहा कि यह खोज भारतीय वैज्ञानिकों की प्रतिभा, समर्पण और शोध क्षमता का उत्कृष्ट उदाहरण है। उन्होंने कहा कि इस उपलब्धि ने भारत को वैश्विक वनस्पति अनुसंधान मानचित्र पर एक नई पहचान दिलाई है। प्रो. विमला ने इस खोज को भारत की वैज्ञानिक प्रगति की दिशा में एक “स्वर्णिम अध्याय” बताया।

















