Haryana: सालाना परीक्षाओं की शुरुआत में अब केवल दो महीने बचे हैं, लेकिन अधिकतर छात्रों का पाठ्यक्रम अभी भी अधूरा है। शिक्षकों और विद्यार्थियों दोनों के लिए यह चिंता का विषय बन गया है। छात्रों में टेंशन और असमंजस का माहौल बना हुआ है। शिक्षकों को भी अपनी जिम्मेदारियों और अधूरे पाठ्यक्रम के बीच संतुलन बनाए रखना मुश्किल हो रहा है। हाल ही में 26 नवंबर को शिक्षा निदेशालय द्वारा शिक्षकों को गैर-शैक्षणिक जिम्मेदारियों से मुक्त करने का आदेश जारी किया गया, जिसे पढ़कर शिक्षकों को थोड़ी राहत मिली।
हालांकि शिक्षकों को गैर-शैक्षणिक कार्यों से छूट देने का आदेश दिया गया, लेकिन यह आदेश केवल कागजों तक ही सीमित रह गया। वास्तविकता में, शिक्षकों की जिम्मेदारियों में कोई कमी नहीं आई है। बीएलओ (Booth Level Officer) के रूप में उनकी ड्यूटी बढ़ा दी गई है। इसके अलावा, पांचवीं कक्षा के छात्रों को छोटे बच्चों को पढ़ाने और उनकी निगरानी करने का कार्य सौंपा जा रहा है। इस वजह से शिक्षकों का समय और ऊर्जा दोनों काफी हद तक गैर-शैक्षणिक कामों में व्यर्थ हो रहे हैं।
शिक्षकों पर परिणाम की जिम्मेदारी
परीक्षाओं के परिणामों की जिम्मेदारी भी सीधे शिक्षकों पर डाली जा रही है। यदि परीक्षा के परिणाम अपेक्षित स्तर से कम आते हैं, तो शिक्षकों को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया जाएगा। इस स्थिति ने शिक्षकों के मन में तनाव और असमंजस पैदा कर दिया है। एक महिला शिक्षक, जो बीएलओ ड्यूटी पर तैनात हैं, ने अपनी कठिनाई और हताशा व्यक्त करते हुए बताया कि वह छात्रों की पढ़ाई पर ध्यान देने के साथ-साथ अन्य गैर-शैक्षणिक कामों को पूरा करने में जूझ रही हैं।
शिक्षा व्यवस्था में सुधार की आवश्यकता
शिक्षकों और छात्रों की इन समस्याओं से साफ़ संकेत मिलता है कि शिक्षा व्यवस्था में सुधार की सख्त जरूरत है। केवल आदेश जारी करने से काम नहीं चलेगा, बल्कि उनके पालन और कार्यान्वयन की निगरानी भी जरूरी है। परीक्षा के निकट समय में शिक्षकों को गैर-शैक्षणिक कामों से मुक्त कर उन्हें शैक्षणिक कार्यों पर ध्यान केंद्रित करने का अवसर दिया जाना चाहिए। अन्यथा अधूरे पाठ्यक्रम और परिणामों की असंतोषजनक स्थिति से विद्यार्थियों का भविष्य प्रभावित हो सकता है।

















