Haryana: गढ़ी हसनपुर के किसान अब टमाटर की खेती को अपनी प्रमुख आजीविका बना चुके हैं। इस क्षेत्र के किसान कल्लू, नरेश, अनिल, राकिंदर और श्यामू ने इस बार बड़े पैमाने पर टमाटर की फसल लगाई है। किसान कल्लू ने बताया कि उन्होंने इस साल 10 बीघा जमीन पर टमाटर की खेती की है, जबकि नरेश और अनिल ने पांच-पांच बीघा, राकिंदर ने दो बीघा और श्यामू ने तीन बीघा में टमाटर बोया है।
किसानों का कहना है कि यदि मौसम और बाजार भाव अनुकूल रहे, तो टमाटर की फसल अन्य सभी फसलों से ज्यादा मुनाफा देती है। आसपास के इलाके के किसान अपने उत्पाद को करनाल, गंगोह और थाना भवन की मंडियों में बेचते हैं, जहां टमाटर की अच्छी मांग बनी रहती है।
टमाटर की ‘माल्या वैरायटी’ का उत्पादन करते हुए लगभग 2 लाख 35 हजार रुपये का मुनाफा कमाया है. उन्होंने बताया कि पॉलीहाउस में नियंत्रित तापमान और मल्चिंग विधि के उपयोग से फसल की गुणवत्ता एवं उत्पादन में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई.
पॉलीहाउस निर्माण पर 17 लाख रुपए की सब्सिडी
राष्ट्रीय बागवानी मिशन के तहत संरक्षित खेती को बढ़ावा देने के लिए पॉलीहाउस निर्माण पर 17 लाख रुपये का अनुदान मिला हुआ, जबकि पॉलीहाउस की कुल लागत 34 लाख रुपये रही. इसके अलावा पैक हाउस निर्माण के लिए 2 लाख रुपये और दवाई छिड़काव के लिए स्ट्रिप मशीन पर 50% सब्सिडी भी प्रदान की गई.
गढ़ी हसनपुर और आसपास के किसान जिस टमाटर की किस्म की खेती कर रहे हैं, वह 5013 वैरायटी है। यह किस्म लगभग 45 दिनों में फल देने लगती है और एक सीजन में करीब 15 बार फसल की तुड़ाई होती है। एक बीघा में करीब 1,200 पौधे लगाए जाते हैं, और प्रत्येक पौधे से औसतन 30 किलोग्राम टमाटर की पैदावार होती है। इस तरह एक बीघा से लगभग 36,000 किलोग्राम टमाटर प्राप्त होता है। किसानों के अनुसार, एक बीघा की कुल लागत लगभग 48,000 रुपये आती है, जिसमें बीज, खाद, मजदूरी और कीटनाशक के तीन स्प्रे शामिल हैं।
किसानों का मानना है कि यदि बाजार में टमाटर के भाव ठीक रहे, तो यह फसल अन्य परंपरागत फसलों जैसे गेहूं, चावल या गन्ना की तुलना में कहीं ज्यादा लाभदायक है। कल्लू ने बताया कि औसतन 25,000 से 30,000 रुपए प्रति एकड़ का शुद्ध मुनाफा आसानी से हो जाता है। किसानों का कहना है कि टमाटर की खेती ने गांव में रोजगार और आत्मनिर्भरता दोनों को बढ़ावा दिया है। अब कई युवा भी पारंपरिक खेती छोड़कर टमाटर जैसी कैश क्रॉप्स (लाभकारी फसलों) की ओर रुख कर रहे हैं। स्थानीय मंडियों में टमाटर की बढ़ती मांग और उचित दाम मिलने से किसानों के चेहरे पर मुस्कान लौट आई है।

















