Haryana: पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने हरियाणा सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि किसी कर्मचारी को वर्षों तक उसका वैधानिक प्रमोशन न देना “प्रशासनिक उदासीनता और प्रक्रियागत अन्याय” का चिंताजनक उदाहरण है। न्यायमूर्ति संदीप मौदगिल की एकल पीठ ने यह आदेश देते हुए सरकार को निर्देश दिया कि राजस्व विभाग के कर्मचारी पूरन सिंह को उनके कनिष्ठ कर्मचारियों के समान 24 अप्रैल 1995 से कनूगो पद पर पदोन्नत माना जाए। इसके साथ ही सरकार को तीन माह के भीतर उन्हें समस्त वित्तीय लाभ, सेवा लाभ और पेंशन संबंधी लाभ प्रदान करने के निर्देश दिए गए। कोर्ट ने इस मामले को प्रशासनिक सुस्ती और भेदभाव का प्रतीक करार दिया।
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि पूरन सिंह को प्रमोशन न देने का कोई ठोस या वैध कारण नहीं था। वे सभी योग्यता मानदंडों को पूरा करते थे और उनके खिलाफ कोई गंभीर आपत्ति भी दर्ज नहीं थी। पूरन सिंह ने गुरुग्राम जिले में वर्ष 1958 में पटवारी के रूप में सेवा शुरू की थी। वे पिछड़े वर्ग से संबंधित थे और मिडिल पास के साथ स्नातक भी थे। उन्होंने वर्ष 1984 में कनूगो विभागीय परीक्षा उत्तीर्ण कर ली थी। उस समय 1981 के नियमों के तहत मैट्रिक पास होना अनिवार्य था, लेकिन राज्यपाल ने 12 फरवरी 1985 को एक आदेश जारी कर 4 जनवरी 1966 से पहले भर्ती हुए पटवारियों के लिए इस शैक्षणिक योग्यता में छूट दी थी। इसके बाद पूरन सिंह पदोन्नति के योग्य हो गए थे।
झूठे कारणों से प्रमोशन रोका गया, कोर्ट ने बताया अन्यायपूर्ण
इसके बावजूद विभाग ने उन्हें प्रमोशन देने से इनकार कर दिया और उनके कनिष्ठों को 24 अप्रैल 1995 को कनूगो के पद पर पदोन्नत कर दिया। सरकार ने अपने बचाव में यह तर्क दिया कि पूरन सिंह की कुछ वार्षिक गोपनीय रिपोर्टों (ACR) में नकारात्मक टिप्पणियाँ थीं और उन पर एक धोखाधड़ी का मामला भी दर्ज था। इस पर कोर्ट ने पाया कि ये नकारात्मक एसीआर प्रविष्टियाँ न तो कभी उन्हें बताई गईं और न ही स्थायी थीं; बाद में इन्हें हटा दिया गया था। साथ ही, पूरन सिंह को 22 सितंबर 1995 को दर्ज आपराधिक मामले से पूरी तरह बरी कर दिया गया था। इसलिए इन आधारों पर प्रमोशन रोकना पूरी तरह से अवैध और अनुचित था। कोर्ट ने कहा कि यह मामला “न्याय में देरी, भेदभाव और प्रशासनिक उदासीनता” का सटीक उदाहरण है।
सरकार को तीन माह में देना होगा पूरा लाभ
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि पूरन सिंह को 24 अप्रैल 1995 से कनूगो के पद पर पदोन्नत माना जाए और उसी तिथि से उन्हें वरिष्ठता, वेतन, पेंशन तथा अन्य सेवा लाभ प्रदान किए जाएं। न्यायमूर्ति मौदगिल ने अपने निर्णय में कहा कि किसी कर्मचारी को बिना उचित कारण अवसर से वंचित करना भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 का उल्लंघन है। कोर्ट ने हरियाणा सरकार को आदेश दिया कि तीन महीने के भीतर पूरा मामला निपटाया जाए और पूरन सिंह को उनका उचित हक दिलाया जाए। न्यायालय ने टिप्पणी की कि प्रशासनिक लापरवाही और पक्षपातपूर्ण रवैया न केवल कर्मचारी के अधिकारों का हनन करता है, बल्कि शासन प्रणाली की विश्वसनीयता पर भी प्रश्नचिह्न लगाता है।
















