रेवाडी: कोरोना काल में निजी अस्पताल की लापरवाही के साथ मनमर्जी का शिकार बने लोग आजतक भी परेशान हैं। सुनारिया निवासी अनिल कुमार ने मुख्यमंत्री को शिकायत भेजकर डिलीवरी उपरांत जन्म पत्र नहीं बनाने व बिलों पर हस्ताक्षर नहीं करने वाले चिकित्सक के खिलाफ कार्रवाई की मांग की हैं।
भेजी गई शिकायत में बताया कि वह अपनी पत्नी मनीता देवी का सरकारी अस्पताल मे रूटीन चैक कराने गया था। छुटी होेने के चलते डा संतोष यादव ने उसे प्राईवेट अस्पताल नंदलाल में बुला लिया गया। चिकित्सको की लापरवाही से डीलीवरी के चलते मेरी पत्नी ने मौत हो गई थी। लेकिन बच्चा ठीक ठाक हमें सोंप दिया गया था।
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डिलीवरी के 22 मार्च 2020 को हुई थी। ढाई साल बितने के बावजूद न तो मेरे बेटे का जन्म प्रमाण पत्र बनाया गया है तथा मेडिकल के कागजातो पर हस्ताक्षर किए जा रहे। जन्म प्रमाण पत्र के अभाव में बच्चे का आधार कार्ड भी नही बन पाया है। वह कही बार अस्पताल जाकर चिकित्सक से मिल चुका हूं, लेकिन कोई सुनवाई नहीं की जा रही है।
गृहमंत्री के पास पहुंचा मामला: ढाई साल से कई बार पीडित अस्पताल से पत्र व्यवहार व पर्सनल मिल चुका है, लेकिन कोई सुनवाई नहीं की जा रही है। कागजातो के अभाव में उसे बच्चे का भविष्य दाव पर लगा हुआ है। पीडित ने उपायुक्त रेवाडी, सीएमओ रेवडी, गृहमंत्री व मुख्य सचिव मेडिकल को शिकायत भेजकर कार्रवाई करने की मांग की है।
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विवादो मेेें रहा है अस्पताल: कोरोना के इलाज की आड़ में मरीजों से भारी भरकम फीस वसूलने के चलते भी इस अस्पताल को डी-नोटिफाई कर दिया गया है। जिला प्रशासन को अस्पतालों में तय दरों से अधिक कीमत वसूलने की शिकायतें मिल रही थी। हाल ही में एक कॉल रिकॉर्डिंग भी सोशल मीडिया पर वायरल हुई, जिसमें अस्पताल कर्मी साफ तौर पर कह रहा है कि रेवाड़ी के कैप्टन नंदलाल अस्पताल में ऑक्सीजन बेड के लिए प्रतिदिन के हिसाब से 50 हजार रुपए जमा कराने होंगे।