Haryana News: पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने छात्रों को बड़ी राहत देते हुए हरियाणा सरकार को लाइक्स्टाक डेवलपमेंट डिप्लोमा कोर्स की बढ़ाई गई फीस पर पुनर्विचार करने के आदेश जारी किए हैं। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि फीस में की गई भारी वृद्धि किसी ठोस आधार या वस्तुनिष्ठ मूल्यांकन पर आधारित नहीं थी। यह आदेश जस्टिस अश्विनी कुमार मिश्रा और जस्टिस रोहित कपूर की खंडपीठ ने छात्र गौरव द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई के बाद पारित किया है।
फीस वृद्धि को चुनौती
गौरव ने सरकार की 21 अगस्त 2024 की नोटिफिकेशन को चुनौती दी थी। इस नोटिफिकेशन के तहत 2024-25 शैक्षणिक सत्र के लिए राज्य कोटे की फीस 90,000 रुपये से बढ़ाकर 1,80,000 रुपये और प्रबंधन कोटे की फीस 1,50,000 रुपये से बढ़ाकर 2,50,000 रुपये कर दी गई थी। याचिकाकर्ता के वकील सरदविंदर गोयल ने अदालत में दलील दी कि इतनी अधिक फीस वृद्धि शिक्षा के व्यावसायीकरण की ओर इशारा करती है, जो शिक्षा के मूल उद्देश्य के खिलाफ है।
कोर्ट ने कहा कि फीस निर्धारण के लिए सरकार ने एक समिति जरूर बनाई थी, लेकिन उस समिति ने कोई ठोस मानदंड या कारण नहीं बताए जिससे इतनी बड़ी वृद्धि को जायज ठहराया जा सके। अदालत ने यह भी कहा कि शिक्षा मानव विकास का एक सार्वजनिक सेवा क्षेत्र है, न कि केवल मुनाफा कमाने का साधन।
सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों का हवाला
पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के महत्वपूर्ण फैसलों का हवाला दिया, जिनमें टीएमए पाई फाउंडेशन बनाम कर्नाटक राज्य (2002), पीए इनामदार बनाम महाराष्ट्र राज्य (2005), और इस्लामिक एकेडमी ऑफ एजुकेशन बनाम कर्नाटक राज्य (2003) शामिल हैं। इन फैसलों में स्पष्ट किया गया है कि शैक्षणिक संस्थान लाभ के लिए काम नहीं कर सकते और उनकी प्राथमिकता शिक्षा का प्रचार-प्रसार होना चाहिए।
छात्रों को उम्मीद की किरण
इस फैसले से छात्रों को बड़ी राहत मिली है। अब हरियाणा सरकार को फीस वृद्धि के फैसले पर पुनर्विचार करना होगा और इस बार वे ऐसा निर्णय लें जो छात्रों के हित में हो। यह आदेश शिक्षा के व्यवसायीकरण के खिलाफ एक मजबूत संदेश है और उम्मीद जताई जा रही है कि इससे शिक्षा अधिक सुलभ और न्यायसंगत बनेगी।

















