Delhi में वायु प्रदूषण का मुद्दा अक्सर पड़ोसी राज्यों में पराली जलाने के कारण बताया जाता है। वर्षों से इस मुद्दे पर राजनीतिक बहस होती रही है। हालांकि, हाल की रिसर्च में यह स्पष्ट हुआ है कि राजधानी की हवा स्थानीय कारकों की वजह से विषैला बन रही है। सेंट्रल फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) की नई रिपोर्ट के अनुसार, पराली जलाने के बहाने अब काम नहीं करेंगे, बल्कि स्थानीय प्रदूषण स्रोतों को खत्म करने के लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत है।
CSE ने NCR शहरों में शुरुआती सर्दियों के दौरान वायु प्रदूषण की स्थिति का विश्लेषण किया। रिपोर्ट में कहा गया है कि पंजाब और हरियाणा में इस साल पराली जलाने की घटनाओं में कमी होने के बावजूद दिल्ली की वायु गुणवत्ता ‘बहुत खराब’ से ‘गंभीर’ श्रेणी में बनी रही। इसका मतलब है कि यहाँ का प्रदूषण मुख्य रूप से वाहनों, उद्योगों, कचरा जलाने, निर्माण कार्यों से धूल और घरेलू ईंधन के कारण हो रहा है। पराली जलाने का योगदान अधिकांश दिनों में 5% से कम रहा और अधिकतम 22% तक पहुँच पाया। रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया कि PM 2.5 के साथ-साथ नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO2) और कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) का स्तर भी बढ़ रहा है, जो वाहनों और अन्य दहन स्रोतों से उत्पन्न हो रहा है।
दिल्ली और NCR में प्रदूषण हॉटस्पॉट बढ़े
रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि दिल्ली में प्रदूषण हॉटस्पॉट की संख्या बढ़ रही है। 2018 में NCR में केवल 13 हॉटस्पॉट चिन्हित थे, जबकि अब विवेक विहार, नेहरू नगर, अलीपुर, सिरी फोर्ट, पटपारगंज जैसे नए हॉटस्पॉट उभर आए हैं। उत्तर और पूर्व दिल्ली में प्रदूषण की सांद्रता अधिक है। वार्षिक PM 2.5 स्तर के अनुसार सबसे अधिक प्रदूषित क्षेत्र हैं: जाहंगीरपुरी (119 माइक्रोग्राम/घन मीटर), बावना (113), वजीरपुर (113), आनंद विहार (111) और मुंडका, रोहिणी व अशोक विहार में 101-103। छोटे NCR शहरों में भी स्थिति खराब हो रही है, जैसे बहादुरगढ़ में 9 से 18 नवंबर तक लगातार स्मॉग देखा गया।
CSE की सिफारिशें और समाधान
CSE ने प्रदूषण नियंत्रण के लिए कई सिफारिशें दी हैं। इसमें पुराने वाहनों को हटाना, सभी वाहनों को समय पर इलेक्ट्रिक वाहन में बदलना, सार्वजनिक परिवहन के लिए बेहतर बुनियादी ढांचा विकसित करना, निजी वाहनों पर पार्किंग दर बढ़ाना और जाम टैक्स लागू करना शामिल है। इसके अलावा, उद्योगों में स्वच्छ ईंधन का इस्तेमाल, कचरे के जलने पर पूर्ण प्रतिबंध, निर्माण धूल नियंत्रण, पावर प्लांट में कड़े उत्सर्जन मानक, घरेलू ईंधन की स्वच्छता और किसानों को पराली से ऊर्जा या एथेनॉल/गैस बनाने के लिए प्रोत्साहित करना शामिल है।
CSE की कार्यकारी निदेशक (अनुसंधान और वकालत) अनुपमा रॉय चौधरी ने कहा, “PM 2.5 और अन्य विषैले गैसों जैसे NO2 और CO का स्तर बढ़ना चिंता का विषय है। अब छोटे कदम कारगर नहीं हैं। वाहनों, उद्योगों, पावर प्लांट्स, कचरा, निर्माण और घरेलू ऊर्जा स्रोतों में बड़े संरचनात्मक बदलाव आवश्यक हैं।” यह स्पष्ट करता है कि दिल्ली और NCR में प्रदूषण नियंत्रण के लिए तत्काल और व्यापक कदम उठाने की आवश्यकता है।
















