हरियाणा: रेवाडी के किसानो के लिए बडी खुशी की खबर है। क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र बावल में बायो कंट्रोल लैब स्थापित की जाएगी। इसके लिए करीब एक करोड रूपए खर्च होंगे।
प्रोजेक्ट को लेकर क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र बावल की ओर से चौ. चरण सिंह कृषि विश्वविद्यालय, हिसार के माध्यम से मंजूरी के लिए राज्य सरकार को भेजा गया है। मंजूरी मिलते ही कार्य शुरू कर दिया जाएगा।
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हर साल बढ रहे किसान: जिले के किसान जैविक खेती की तरफ कदम बढ़ने लगे हैं। वर्तमान में 150 से ज्यादा किसान 500 एकड़ में जैविक खेती कर रहे हैं और यह दायरा लगातार बढ़ रहा है।
जानिए क्या होगे फायदे:
1. अधिकारियो ने बताया मार्च माह में खजूर के 20 पौधे मंगाए जाएंगे। जिन पर रिसर्च किया जाएगा। इसमें देखा जाएगा कि जिले में खजूर के पौधों को उगाने के लिए जलवायु उपयुक्त है या नहीं।
2 . में जीरो टिलेज (शून्य जुताई) तकनीक से बिजाई होती है, लेकिन अभी कम है। भविष्य में इसे और विस्तार देने के लिए तैयारी चल रही है। इस तकनीक से पिछले दिनों मूंग व गेहूं की बिजाई हुई थी। अब इसमें और विस्तार देने की तैयारी है।
3. इसमें खास रहेगा कि जैविक खेती करने के लिए किसानों के सामने जो दिक्कतें आएंगी, उनका भी समाधान होगा। जैविक खेती के लिए किसानों को इस लैब से बड़ी सहायता मिलेगी।
जैविक खेती के लिए इस लैब में दीमक, उखेड़ा रोग व फफूंदी रोग के नियंत्रण के लिए जीवाणुओं का उत्पादन किया जाएगा। इन जीवाणुओं में ट्राइकोडरमा, मेटारिजियम व बवेरिया आदि शामिल हैं।हाथों में निशान लेकर धाम को रवाना हुआ भक्तों का जत्था
4. हॉट्रीकल्चर (फलदार) पौधों के लिए भी हाइटेक नर्सरी बनाने की तैयारी चल रही है। इसमें शेड नेट और पॉली हाउस बनेगा। जिसमें पौधे संरक्षित रहेंगे। सर्दी, गर्मी और बरसात में भी पौधे बेहतर बनेंगे।
5. प्राकृतिक खेती को वैज्ञानिक आधार पर करने के लिए गाय के यूरिन और गोबर से तैयार की जाने वाली दवाइयों पर भी रिसर्च होगा। इसके रिसर्च के लिए भी प्रोजेक्ट भेजा हुआ है। स्वीकृति मिलती है तो प्राकृतिक खेती को करने में आने वाली समस्याएं भी दूर हो सकती है।
दवाइयों पर रिसर्च हो सकेगा
बायो कंट्रोल लैब के लिए निदेशालय को एक करोड़ रुपये का प्रपोजल बनाकर भेजा गया है। किसानों को भी ट्रेनिंग मिलेगी। इन प्रोजेक्ट को मंजूरी के लिए भेज दिया गया है। अगर ये प्रोजेक्ट मिलते हैं तो बीएससी एग्रीकल्चर कर रहे विद्यार्थी रिसर्च कर सकेंगे।
– डॉ. धर्मबीर यादव, डायरेक्टर, रीजनल एग्रीकल्चर रिसर्च सेंटर