दिल्ली: कपनियो मे नौकरी करने वाले असमंजस मे है। हायर पैंशन ले या नहीं । कही ऐसा तो नही है कि मेरा पैसा फस जाएगा। कई तरह के सवालो ने उनके दिमाग को घेर लिया है।
उनकी बात भी जायज है। आजीवन की कमाई तो ठहरी। रिसक् ले तो उन्हे फायदा होगा या नही।
बता दे कि कंपनियों में नौकरी करने वाले जानते हैं कि उनकी सैलरी में से प्रॉविडेंट फंड के लिए पैसे कटते हैं, जो रिटायरमेंट के बाद एकमुश्त मिलेंगे। मगर, कई लोगों को पता नहीं होता कि इस स्कीम में प्रॉविडेंट फंड के साथ जीवन भर की पेंशन भी शामिल हो सकती है।Railway train fare Concession: इन लोगों को ट्रेन के किराए में मिलेगी इतनी छूट, जानिए कैस उठाए लाभ
अगर, नौकरी रहते या रिटायरमेंट के बाद मौत हो जाए तो उसके पास नॉमिनी को भी पेंशन मिलती है। हालाकि ये पैंशन स्वयं की बजाय आधी ही मिलेगी।
जानिए क्या पेंशन स्कीम : फिलहाल EPS दो तरह के कर्मचारियों पर लागू है। पहला, जिनकी बेसिक सैलरी और डीए 15,000 रुपये से कम है। दूसरा, जो भी शख्स 1 सितंबर 2014 या उससे पहले EPF का मेंबर था।
इस वक्त ही बैसिंक सैलरी 20 हजार रुपये हो, लेकिन EPS के लिए अधिकतम सीमा 15 हजार ही मानी गई। इसी के हिसाब 8.33 फीसदी हिस्सा 1,250 रुपये ही EPS यानि पैंशन में जमा की जा रही है। यह पुरानी स्कीम हो रहा है।
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जानिए कैसे बनेगी हायर स्कीम से पेंशन : नौकरी के आखिरी पांच साल की मंथली एवरेज सैलरी नोट कर लें। फिर देखें कि EPS के दायरे में कितने साल योगदान दिया। अगर 20 साल से ज्यादा योगदान दिया तो 2 साल एक्स्ट्रा जोड़ लें।
एवरेस बैसिक सेलरी को नौकरी की साल से गुणा कर दे तथा 70 से भाग कर दे। जितना होगा उतनी ही आपके हायर पैंशन स्कीम से सैलरी मिलेगी।
कर्मचारी प्रॉविडेंट फंड (EPF) की इस स्कीम में कर्मचारी और कंपनी दोनों का पैसा जाता है। कर्मचारी की बेसिक सैलरी और डीए का 12 फीसदी हिस्सा प्रॉविडेंट फंड में जमा होता है।
एंप्लॉयर यानि कंपनी यार संगठन को भी ठीक इतना ही देना होता है, लेकिन उसकी पूरी रकम पेंशन फंड (EPS) में नहीं जाती। 1995 में कर्मचारी पेंशन योजना (EPS) शुरू की गई थी। एंप्लॉयर के 12 फीसदी हिस्से में 8.33 फीसदी रकम EPS में चली जाती है।
औसत सैलरी 15,000 रुपये हो, 35 साल की नौकरी हो तो 7,500 रुपये की पेंशन बनती है। अगर यही औसत सैलरी एक लाख मानी जाती तो पेंशन बढ़कर 50,000 रुपये हो जाएगी। 1996 में एक विकल्प दिया गया था कि कर्मचारी चाहे तो अपनी एक्चुअल बेसिक सैलरी और डीए के आधार पर योगदान दे, ताकि उसे ज्यादा पेंशन मिले। लेकिन 1 सितंबर 2014 को इस ऑप्शन को बंद कर दिया गया। मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा।
कोर्ट ने दिया आदेश: पिछले साल नवंबर में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ज्यादा पेंशन चुनने के लिए चार महीने का मौका फिर से दिया जाए। 1 सितंबर 2014 को सेवारत जो कर्मचारी ज्यादा योगदान देकर ज्यादा पेंशन पाने के दायरे में आ सकते हैं।
कब तक समय सीमा : सुप्रीम कोर्ट की समय सीमा 3 मार्च को खत्म हो जाएगी। लेकिन कर्मचारी बीमा निमग ने इसका दो माह का समय ओर बढा दिया है।
क्या है अनुमान : अभी EPS में 1,250 रुपये का अधिकतम योगदान है। अगर एक लाख रुपये के आधार पर योगदान की छूट दी गई होती तो 8,330 रुपये हर महीने देने होते। यानी 7,080 रुपये का योगदान हर महीने कम दिया गया।
किनका नुकसान : जिनकी नौकरी में कम साल बचे हैं तथा तो बीमार है उसे यह हायर पेंशन स्कीम नहीं लेनी चाहिए।
वित्त मामलों के जानकार ज्यादा टैक्स स्लैब वाले लोगों के लिए भी EPS से ज्यादा पेंशन न चुनना बेहतर हो सकता है। एक विकल्प यह है कि रिटायर होने पर आप प्रॉविडेंट फंड की रकम से रिजर्व बैंक से सरकारी बॉण्ड खरीद लें और नि















