Success Story: प्रियल 10वीं तक पढ़ाई में बेहद मेधावी रहीं और 90 प्रतिशत अंक प्राप्त किए। लेकिन 11वीं में उन्होंने रिश्तेदारों के दबाव में आकर मेडिकल स्ट्रीम (PCM) चुनी, जो उनकी रुचि के अनुरूप नहीं थी। नतीजतन वे फिजिक्स में फेल हो गईं।
यह उनके जीवन का पहला झटका था, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। 12वीं में अपनी पसंद के विषयों के साथ पढ़ाई पूरी की और इंजीनियरिंग में दाखिला लिया।Success Story
कहते हैं, “असफलता से मत डरो, बल्कि कोशिश न करने से डरो।” यह पंक्ति मध्य प्रदेश की डिप्टी कलेक्टर प्रियल यादव (अब प्रियल सिंह राठौड़) की जीवन यात्रा पर पूरी तरह खरी उतरती है।
किसान की बेटी बनी डीसी’: कभी 11वीं कक्षा में असफल रही यह साधारण किसान परिवार की बेटी आज राज्य प्रशासनिक सेवा की अधिकारी बन हजारों युवाओं के लिए प्रेरणा बन चुकी है।
प्रियल यादव मध्य प्रदेश के हरदा जिले की रहने वाली हैं। उनके पिता एक साधारण किसान हैं, जबकि मां गृहिणी हैं। घर की आर्थिक स्थिति सीमित थी, लेकिन उनके माता-पिता ने कभी बेटी की पढ़ाई में रुकावट नहीं आने दी।
पिता तीसरी तक और मां आठवीं तक पढ़ी थीं, फिर भी उन्होंने प्रियल को इंदौर भेजकर उच्च शिक्षा दिलाने का निर्णय लिया।
फिजिक्स में फेल हुई तो लगा झटका: बता दे कि 11वीं में उन्होंने रिश्तेदारों के दबाव में आकर मेडिकल स्ट्रीम (PCM) चुनी, जो उनकी रुचि के अनुरूप नहीं थी। नतीजतन वे फिजिक्स में फेल हो गईं। यह उनके जीवन का पहला झटका था, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। 12वीं में अपनी पसंद के विषयों के साथ पढ़ाई पूरी की और इंजीनियरिंग में दाखिला लिया।
हर बार बेहतर रैंक: इंजीनियरिंग पूरी करने के बाद जब उन्हें नौकरी का अवसर मिला, तो उन्होंने सुरक्षित रास्ता छोड़कर सिविल सेवा की तैयारी शुरू की। पहले पिता सहमत नहीं थे, पर बेटी के आत्मविश्वास ने उन्हें भी मानने पर मजबूर कर दिया।
2019 में पहली बार MPPSC परीक्षा दी और 19वीं रैंक के साथ जिला रजिस्ट्रार बनीं। 2020 में फिर प्रयास किया और 34वीं रैंक हासिल कर सहायक आयुक्त बनीं।
लेकिन लक्ष्य ऊंचा था—2021 में तीसरे प्रयास में उन्होंने 14वीं रैंक प्राप्त की और डिप्टी कलेक्टर बनीं। इस बार वे राज्य की टॉप 10 महिला उम्मीदवारों में भी शामिल रहीं।

















