रेवाड़ी: सुनील चौहान। स्वास्थ्य और महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा पहले चरण में रेवाडी खण्ड के 10 गांव में कुपोषण का पता करने के लिए जांच कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे है। इस कार्यक्रम के तहत उक्त गांवों की आंगनबाड़ी केंद्रों में बच्चों, किशोरियों व महिलाओं के स्वास्थ्य के प्रति जागरूक रहने की जानकारी दी जा रही है। 0-6 वर्ष की आयु तक के बच्चों में स्टनिंग को रोकने और कम करने, 0-6 वर्ष की आयु तक के बच्चों में कुपोषण कम वजन की व्यापकता को रोकने और कम करने, छह माह से पांच साल तक के छोटे बच्चों में एनीमिया के प्रसार को कम करने, बच्चों में वजन की जांच की जा रही है।
उपायुक्त यशेन्द्र सिंह ने यह जानकारी देते हुए बताया कि इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य बच्चों में अल्प पोषण, कम वजनी बच्चों के जन्म तथा किशोरी बालिकाओं, गर्भवती महिलाओं, स्तनपान कराने वाली माताओं तथा बच्चों में रक्त की कमी को दूर करना मुख्य रूप से शामिल है। इस कार्यक्रम के तहत आंगनवाड़ी व आशा वर्कर्स द्वारा शिशु देखभाल और परिवार नियोजन के बारे में जागरूक भी किया जा रहा है। पोषण कार्यक्रम के तहत साफ-सफाई तथा पोष्टिक आहार के प्रति लोगों को जागरूक भी किया जा रहा है। डीसी ने कहा कि हरियाणा प्रदेश के लोग अपनी कद काठी के लिए जाने जाते है, लेकिन आने वाली पीढी की जो हाईट कम हो रही है, इसलिए यह सर्वे कराया जा रहा है।
उपायुक्त ने बताया कि कुपोषण के कारण बच्चों के स्वास्थ्य पर असर न पडे, सर्वे करने के बाद पहचान किए गए बच्चों के पोषण आहार प्रदान किया जाएगा, ताकि वे स्वस्थ्य रहे। उन्होंने बताया कि पहले रेवाडी के ग्रामीण क्षेत्र में 10-10 गांवों में टीम भेजकर बच्चों की स्क्रीनिंग की जा रही है। रेवाडी ग्रामीण के भवाडी, डुगरवास, आकेड़ा, जाडरा, गोकलगढ़, भाड़ावास गांवों में स्क्रीनिंग का कार्य अतिंम चरण में है। इसके बाद बावल खण्ड के गावों में स्क्रीनिंक का कार्य किया जाएगा। डीसी ने कहा कि उनका प्रयास है कि जिले में कोई भी बच्चा कुपोषण का शिकार न हो इसके लिए व्यापक कदम उटाएं जाएगें। उन्होंने बताया कि मुख्यमंत्री सुशासन सहयोगी डॉ मृदुला सूद इस कार्य में सहयोग कर रही है।
कुपोषण के लक्षण:-
आहार में पोषक तत्वों की सही मात्रा नहीं होती है। भोजन स्वस्थ रखने के लिए ऊर्जा और पोषक तत्व प्रदान करता है। बच्चें जो गंभीर रूप से कुपोषित है, वे आमतौर पर धीमी गति से व्यवहारिक और बौद्घिक विकास का अनुभव करते है, जिससे वे मानसिक रूप से विकलांग हो सकते है। हालांकि जो बच्चे ठीक हो जाते है, उनमें लम्बे समय तक कुपोषण के प्रभाव दिखते है। लेकिन स्थिति गंभीर होने पर मुख्य लक्षण के तौर पर थकान, चक्कर आना और वजन कम होना जैसी स्थिति दिखाई दे सकती हैं। इसके अलावा, कुपोषण के अन्य लक्षण त्वचा पर खुजली और जलन की समस्या, हृदय का ठीक से काम न करना, लटकी और बेजान त्वचा, पेट से संबंधित संक्रमण, सूजन की समस्य, श्वसन तंत्र से संबंधित संक्रमण, कमजोर प्रतिरोधक क्षमता, चिड़चिड़ापन आदि शामिल है।
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