किस्मत: जन्म के बाद जिसे पानी के होद में फेंका, वह अब विदेश में रहेगी: एमपी के इंजीनियर दंपती ने लिया गोद
अलवर: जिले के शहर बानसूर में दो साल पहले जिस नवजात को जन्म के बाद पानी के हौद में फेंक दिया गया था, वह अब विदेश में रहेगी। अबू धाबी के इंजीनियर के घर की लक्ष्मी बन गई है। मध्यप्रदेश के जबलपुर के रहने वाले NRI दंपती ने 2 साल की अंशुल को गोद लिया है। अंशुल को जन्म के बाद फेंक दिया गया था। गोद लेने वाला दंपती बेटी पाकर बेहद खुश है।
2 साल पहले बानसूर में मिली:
बानसूर के एक गांव में 2 साल पहले पानी के खाली हौद में नवजात को कपड़े में लपेट कर छोड़ गया था। दो साल तक बच्ची को अलवर के ऑब्जर्वेशन होम में रखा गया। अब राजकीय विशेषज्ञ दत्तक ग्रहण एजेंसी के जरिए एमपी के जबलपुर निवासी NRI ने अंशुल को गोद लिया।
सितंबर को बेटी सौंपी, 20 को पासपोर्ट
2 सितंबर को NRI दंपती को 2 साल की बेटी सौंपी गई। उसके बाद 20 सितंबर को सामाजिक न्याय एवं अधिकारी विभाग के जरिए अलवर में कार्यक्रम आयोजित किया गया। इसमें श्रम राज्य मंत्री व अलवर कलेक्टर नन्नूमल पहाड़िया ने दंपती को गोद ली बेटी का पासपोर्ट बनाकर थमाया। अब परिवार पासपोर्ट के आधार पर उसका वीजा बनवाकर अबूधाबी लेकर जाएंगे।
करीब डेढ़ साल में आई बारी:
राजकीय विशेषज्ञ दत्तक ग्रहण एजेंसी के प्रभारी ने बताया कि गोद लेने की प्रक्रिया में काफी समय लगता है। यह सिस्टम एक तरह से अंतरराष्ट्रीय व राष्ट्रीय स्तर पर कार्य करता है। जैसे इस दंपती ने आफा के जरिए आवेदन किया। जो राष्ट्रीय एजेंसी कारा के जरिए आगे बढ़ा। दंपती की चॉइस के अनुसार इनको राजस्थान स्टेट मिला। राजस्थान में अलवर में इनका नंबर आया। पहले इस दंपती ने बेबी को देखा। जब इनको पसंद आ गई तब ऑनलाइन प्रक्रिया आगे बढ़ी। सभी प्रक्रिया पूरी होने के बाद 2 सितंबर को इनको बेबी गोद दी गई। इस प्रक्रिया तक आने में करीब डेढ़ साल का समय लग गया। गोद देने के बाद भी एजेंसी अगले दो साल तक मॉनिटरिंग करती है।
पारिवारिक न्यायालय में भी पहुंचता है मामला:
गोद देने की प्रक्रिया के तहत मामला पारिवारिक न्यायालय में भी जाता है। वहां की पूरी प्रक्रिया होती है। इसके बाद न्यायालय से गोद देने की मंजूरी मिलती है। तभी बेबी को दिया जाता है। देशभर में इसी प्रक्रिया के तहत बच्चे गोद दिए जाते हैं।