महाराष्ट्र : पद्मश्री से सम्मानित , महाराष्ट्र की मदर टेरेसा के रूप में फेमस पद्मश्री सिंधुताई सपकाल का मंगलवार रात पुणे में निधन हो गया। 73 वर्षीय सिंधुताई सेप्टीसीमिया से पीड़ित थीं और पिछले डेढ़ महीने उनका इलाज पुणे के गैलेक्सी हॉस्पिटल में जारी था। पिछले साल उन्हें पदमश्री से सम्मानित किया गया था। जानकारी के मुताबिक, उन्होंने शाम 8.30 बजे अंतिम सांस ली है। कल पुणे में पूरे राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा। हॉस्पिटल की ओर से जल्द ही एक आधिकारिक बयान भी जारी होगा।
बेघर बच्चों की देखरेख करने वाली सिंधुताई के लिए कहा जाता है कि इनके 1500 बच्चे, 150 से ज्यादा बहुएं और 300 से ज्यादा दामाद हैं। सिंधु ताई ने अपनी जिंदगी अनाथ बच्चों की सेवा में गुजारी दी, उनका पेट भरने के लिए कभी ट्रेनों में भीख तक मांगी।
रोटी का किया धन्यवाद
सिंधुताई ने कहा, ‘मुझे ऐसा लगता है कि आज मेरा जीवन अपने अंतिम पड़ाव पर पहुंच गया है। मेरे बच्चे बहुत खुश हैं। लेकिन अतीत को भुलाया नहीं जा सकता। मैं अतीत को पीछे छोड़ अब बच्चों के वर्तमान को संवारने का काम कर रही हूं। आप (मीडिया) का सहयोग हमेशा मुझे मिलता रहा है। आपकी मदद से मुझे यह दुनिया जान रही है।’ ताई ने आगे कहा, ‘मेरी प्रेरणा, मेरी भूख और मेरी रोटी है। मैं इस रोटी का धन्यवाद करती हूं क्योंकि इसी के लिए लोगों ने मेरा उस समय साथ दिया, जब मेरी जेब में खाने के भी पैसे नहीं थे। यह पुरस्कार मेरे उन बच्चों के लिए हैं जिन्होंने मुझे जीने की ताकत दी।’
ट्रेन में भीख मांगी, श्मशान घाट से चिता की रोटी खाई
महाराष्ट्र के वर्धा जिले के एक सामान्य गोपालक परिवार में सिंधुताई सपकाल का जन्म 14 नवंबर, 1948 को हुआ था। रूढ़िवादी परिवार होने के कारण सिंधुताई को चौथी क्लास में स्कूल छोड़ना पड़ा। 10 साल की उम्र में 20 साल के व्यक्ति से शादी हुई। कुछ साल बाद वह गर्भवती हो गई। पति ने 9वें महीने में पेट में लात मारी और उन्हें घर से निकाल दिया। इसके बाद उन्होंने बेहोशी की हालत में गायों के बीच एक बेटी को जन्म दिया फिर अपने हाथ से नाल भी काटी। बेघर होने के चलते उन्होंने बेटी को स्टेशन पर छोड़ दिया। इन सब बातों ने उन्हें अंदर तक झकझोर दिया। उन्होंने आत्महत्या करने की भी सोची। बाद में अपना पेट भरने के लिए ट्रेन में भीख भी मांगी। कभी-कभी श्मशान घाट में चिता की रोटी भी खाई।
ऐसे मिली बेघर बच्चों को घर देने की प्रेरणा
ट्रेन में भीख मांगने के बाद वे स्टेशन पर ही रहती थीं। एक दिन रेलवे स्टेशन पर सिंधुताई को एक बच्चा मिला। यहीं से उन्हें बेसहारा बच्चों की सहायता करने की प्रेरणा मिली। इसके बाद शुरू हुआ एक अंतहीन सिलसिला, जो आज महाराष्ट्र की 6 बड़ी समाजसेवी संस्थाओं में तब्दील हो चुका है। इन संस्थाओं में 1500 से ज्यादा बेसहारा बच्चे एक परिवार की तरह रहते हैं। सिंधुताई की संस्था में ‘अनाथ’ शब्द का इस्तेमाल वर्जित है। बच्चे उन्हें ताई (मां) कहकर बुलाते हैं। इन आश्रमों में विधवा महिलाओं को भी आसरा मिलता है। वे खाना बनाने से लेकर बच्चों की देखरेख का काम करती हैं।
सिंधुताई को 700 से ज्यादा पुरस्कार मिले
पद्मश्री सिंधुताई को अब तक 700 से ज्यादा सम्मान से नवाजा जा चुका है। उन्हें अब तक मिले सम्मान से जो भी रकम मिली, वह भी उन्होंने बच्चों के पालन-पोषण में खर्च कर दी। सिंधुताई को DY पाटिल इंस्टिट्यूट की तरफ से डॉक्टरेट की उपाधि भी दी गई है। सिंधुताई के जीवन पर बनी एक मराठी फिल्म ‘मी सिंधुताई सपकाल’ साल 2010 में रिलीज हुई थी और इसे 54वें लंदन फिल्म फेस्टिवल में भी दिखाया गया था।कुछ महीने पहले सिंधुताई को पद्मश्री से सम्मानित किया गया था।